सकते हैं, उससे अधिक अंश एक बिन्दु में जुड़ा ही रहता है । ऐसे जुड़ी हुई निश्चित बिन्दु पर समानान्तर रेखा (आधार रेखा) को जोड़ने वाली लक्ष्य रेखा को स्थापित करने पर कोण स्पष्ट हो पाते हैं । हर दो अंशों को जोड़ने पर निश्चित अंशों का कोण बन ही जाता है । इस प्रकार हरेक में एक से अनन्त कोण समाया ही है । सीधा, समकेन्द्रीय रेखाओं के आधार पर ही अंशों का पहचान होता है । समकेन्द्रीय रेखा का मतलब एक बिन्दु से जुड़ी हुई सभी ओर फैली हुई रेखा है, इसको अंश विभाजन रेखा के नाम से पहचाना गया है । इसी विधि से समकेन्द्रीय रेखा, एक बिन्दु में बहुत सारा जुड़ा हुआ, चित्र को हम हर व्यक्ति बना सकते हैं । ऐसे परस्पर रेखाओं की जैसे-जैसे केन्द्र से दूरी बढ़ती है, वैसे-वैसे परस्पर रेखा की दूरी भी बढ़ती जाती है । इसी क्रम में दृष्टि पाट की पहचान हो जाती है । स्पष्ट भी होती है, स्वीकार भी होती है । अंश, कोण, विस्तार, दूरी ये सब मानव दृष्टि के गम्य तथ्य है ? इसीलिए मानव की दृष्टि को आधार में रखते हुए, हर तथ्यों को पहचानने की विधि बनती है । इसी प्रकार दूसरे विधि से किसी समतल रचना पर दो धु्रवों को पहचानने के अनंतर, इसी समझ के आधार पर तीन धु्रवों को पहचानने के अनंतर, धु्रवों को धु्रवों से जोड़ने पर कोणों का पहचान होती है । हर कोण किसी न किसी निश्चित संख्यात्मक अंशों का चित्र होना पाया जाता है । इस प्रकार दिशा और कोण दोनों स्पष्ट होते हैं । इसी के साथ दूरी भी स्पष्ट होती है ।
आयाम
हम आयाम संबंधी भाषा प्रयोग करते ही आये हैं । कोई भी एक वस्तु छः ओर से सीमित होते हुए, तीन आयाम की ही बात करते हैं । इसमें भी मानव की दृष्टि ही प्रधान आधार है । किसी भी वस्तु के छः ओर मानव के आखों में प्रतिबिम्बित होने के लिए कम से कम तीन प्रकार (ओर) से देखने की आवश्यकता बनी रहती है । इसी को हम तीन आयाम कहते हैं । इकाई अपने स्वरुप में व्यापक वस्तु में भीगी, डूबी, घिरी है । व्यापक वस्तु पारदर्शी होने के आधार पर मानव के दृष्टि पाट में वस्तु का अवस्थिति, परिस्थिति और वस्तुओं का प्रतिबिम्ब चक्षु में होने को दृग बिन्दुओं के रुप में देखा जा रहा है । दृग बिन्दु के रुप में प्रतिबिम्बित होने वाली वस्तुयें अपने संपूर्ण आकार आयतन का 180 अंश तक मानव के चक्षु पर प्रतिबिम्बित हो सकते हैं, इससे ज्यादा नहीं हो पाते हैं । चक्षु पर प्रतिबिम्बित होने वाली सभी वस्तुएं,अपने में से आंशिकता को ही प्रतिबिम्ब रुप में होना, परीक्षण, निरीक्षण पूर्वक कर सकता है । इसे हर मानव प्रयोग कर सकता है । प्रयोग के लिए विविध वस्तुयें मानव के सम्मुख रखा ही है । इसमें एक मानव, मानव