विवेक संयुक्त विधि से सहअस्तित्ववादी नजरिया से संपूर्ण को पहचानना कारण, गुण, गणितात्मक भाषा से संप्रेषित हो पाना, बोध हो पाना, फलस्वरुप मानवाकाँक्षा, जीवनाकाँक्षा रुपी लक्ष्य को पाना ही एक मात्र आवश्यकता है । इस पर तुलने के लिए दिशा और दृष्टि बहुत आवश्यकीय क्रिया है । दिशा को हम इस प्रकार से समझे-भौगोलिक विधियों से दिशा को हम जानते ही हैं, खगोलीय विधि से भी दिशा को जानते हैं । अब इसके साथ और दो भाग जो ओझिल हैं- विकास की दिशा और जागृति के लिए दिशा की पहचान होने की आवश्यकता है । विकास के लिए दिशा रासायनिक, भौतिक और जीव संसार के साथ पूरकता और उपयोगिता विधि से अपने कार्य व्यवहार अर्थात् मानव अपने कार्य व्यवहार को निर्णीत करना ही और आचरण में लाना ही, फल परिणाम को पाना ही, विकास की दिशा का मतलब है । जागृति दिशा का तात्पर्य भी यही है कि समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, भागीदारी पूर्वक मानव में संगीत को, सामरस्यता को प्रमाणित करना, जीवनाकाँक्षा और मानवाकाँक्षा को प्रमाणित करना है । इन दोनों मुद्दों पर मानव को सफल होने की आवश्यकता है । इसके लिए सहअस्तित्ववादी नजरिया ही नित्य समाधान है ।
मानव संतुष्टि की नजरिये से रुप, गुण, स्वभाव, धर्म रुपी आयामों को स्पष्टता से हृदयंगम करने के उपरान्त ही हर मानव विकास और जागृति के संदर्भ में समाधानात्मक निर्णय संपन्न होना, फलस्वरुप जागृति और विकास की दिशा में सार्थक हो पाना होता है । यही सारांश है ।
15. काल
काल की परिभाषा ‘क्रिया की अवधि’ के रुप में होना स्पष्ट है । क्रिया अपने में निरन्तर संपन्न होती ही रहती है । साथ में कुछ क्रियायें आवर्तित होती रहती है । ऐसे आवर्तन की निरन्तरता बनी रहती है । कभी बंद होती ही नहीं । ऐसी निरन्तर संपन्न होने वाली क्रिया के एक आवर्तन के आधार पर काल को पहचानने का आधार माना गया । धरती का अपने एक घूर्णन गति में, पूरी धरती में दिन रात्रि संपन्न होना पाया जाता है । इसी को एक दिन की संज्ञा दी गयी है । ऐसी दिन रात्रि की क्रिया सदा-सदा से चली आयी है, चलती रहेगी । इस अवधि को 24 भाग, 60 भाग से विभाजित कर घण्टा, मिनट, घटी, पल आदि नामों से पहचानते हैं । इस ढंग से हम समय का विभाजन करते गये, क्रिया को भूल गये । समय के आधार पर हर क्रिया का मूल्यांकन