के सम्मुख खड़े होकर देखने पर लम्बाई, चौड़ाई, मोटाई और बनावट संबंधी, निश्चित अच्छी दूरी से देखने पर, 180 अंश अर्थात् मानव रुपी वस्तु का आधा भाग ही दिखता है । बाकी आधा भाग ओझिल ही रहता है । इस प्रकार आँखों से जो दिखता है, वह अधूरा है । आँखों से देखकर केवल उसके आधार पर जो निर्णय करते हैं, वह भी अधूरा है । इस पर आधारित जितने भी कार्यक्रम हैं, उनका भी अधूरा होना स्वभाविक है । मानव अपने तृप्ति पाने के क्रम में अधूरापन को स्वीकारता नहीं । इस मुद्दे पर पहले ही सामान्य रुप में स्पष्ट किया जा चुका है कि गणित आँखों से अधिक, समझ से कम है । अर्थात् गणित भाषा से जो बोध होता है, वह आँखों से अधिक होता है, जबकि आँखों के आधार पर भी बोध होने की बात समझ में आता है, अथवा चित्रित होने की बात आती है । चित्र भी नजर के आधार पर सोच-विचार बना रहता है, वह भी अधूरा रहता है । चित्र में आकार आयतन का 180 अंश ही दिख पाता है । नजरों में भी 180 अंश ही समा पाता है । जबकि गणितीय भाषा से जो बोध होता है, वह आकार, आयतन का पूरा बोध कराता है । आँखों में घन का कोई प्रतिबिंबन होता ही नहीं समझ में आता है । इसके आगे यह भी स्पष्ट किया है कि गणितीय विधि से जो कुछ भी हमको समझ में आता है, उससे अधिक गुणात्मक और कारण भाषा से समझ में आता है । क्योंकि हर वस्तु की संपूर्णता रुप, गुण, स्वभाव, धर्म का समुच्चय है । रुप, गुण, स्वभाव, धर्म संबंधी व्याख्या पहले किया जा चुका है । मानव में, से, के लिए हर वस्तु का बोध रुप, गुण, स्वभाव, धर्म के साथ ही संपूर्ण बोध और तृप्ति का कारण बन पाता है । इनमें से कोई भाग ओझिल रहने से मानव को तृप्ति होना संभव नहीं है । सम्पूर्ण समझ के आधार पर लिया गया निर्णय और कार्य व्यवहार समाधान कारक होगा । यह बात समझ में आती है । समस्या को मानव स्वीकारता नहीं । समाधान को स्वीकारता है । हर दिशा, कोण, आयाम में संपूर्णता के आधार पर लिये गये निर्णयों के साथ समाधान र्निगमित होता है । इसे भले प्रकार से हर मानव जाँच सकता है ।
उक्त प्रकार से आँखों के आधार पर निर्भर होकर जितने भी प्रयोग, निर्णय मानव जाति ने किया है, वह सब परिणामतः अनगिनत समस्या का स्वरुप हो चुका है । यंत्र प्रमाण, आँखों से अधिक हो नहीं सकता । यही सबसे बड़ा प्रमाण है । विज्ञान की चेष्टा आँख को प्रयोग करना, आँखों को और ज्यादा सूक्ष्मतम रुप में देखने के लिए औजारों को बना लेना, कर्माभ्यास में आ चुका है । अर्थात् पावरफुल लैंस, लाखों-करोड़ों गुणा बड़ा दिखाने वाला, अरबों-खरबों गुणा दिखाने के लिए इलेक्ट्रानिक लैंस भी प्रयोग में आ चुकी है । इन सबके उपरान्त भी आँख में जो होता है, आँख को अरबों गुणा कारगर बना ले, अर्थ उतना ही निकलता है । इसीलिए ज्ञान, विज्ञान,