इस प्रकार से इस धरती पर रसायन द्रव्य समृद्ध होने की क्रिया घटित हो रही है । इन रसायन द्रव्यों के योग-संयोग से पुष्टि तत्वों, रचना तत्वों का निर्माण, इस घटना के लिये विकिरणीय किरण और उष्मा संयोग के बने रहने से प्रसवित होता हुआ, आज के दिन में वैभवित होता हुआ देखने को मिलता है । पुष्टि तत्व और रचना तत्व के योगफल में प्राण सूत्रों की रचना, प्रस्तुति, कार्यशीलता होता हुआ देखने को मिल रहा है । यही पुष्टि तत्व और रचना तत्व अपने आप में वैभवित होने के रुप में प्राण सूत्र और प्राण सूत्र का रचना यही उष्मा संयोग, विकिरणीय संयोग से कंपन वश, प्राण सूत्रों में रचना विधि सहित श्वसन क्रिया का प्रकाशन होता है । इसके तुरंत बाद ही प्राणकोषाओं का स्वरुप कोषाओं से रचित रचना, ऐसे रचनायें विविध होने के लिए प्राण सूत्रों में रचना विधि की स्वीकृति समझ में आती है । एक प्रकार की रचना अपने में समृद्ध होने के उपरान्त, दूसरे प्रकार की रचना के लिए प्राण सूत्रों में स्वीकृति, फलस्वरुप दूसरे प्रकार की रचनायें इसी क्रम में अन्य रचनायें इस धरती पर प्रमाणित हो चुके हैं । ये सब बीज-वृक्ष विधि सहित है । इसी क्रम में वनस्पतियों का वैभव क्रम, वनस्पतियों की रचना-विरचना होने का क्रम और निरन्तरता यथा स्थिति के रुप में है ।

विरचित वनस्पतियों का अवशेष ही स्वेदज संसार का आधार बना । आज भी इस बात का परीक्षण कर सकते हैं । वर्षा ऋतु के पहले पत्ते इकठ्ठे कर के रख लें, वही पत्ते सड़ने के समय में बहुत सारे कीड़े मकोड़े हो जाते हैं । ये कीड़े मकोड़े अण्डज संसार को तैयार करते हैं । ऐसे अण्डज परम्परा में श्रेष्ठता की विधि प्राणकोषाओं में होना स्वभाविक रहा है, अथवा और श्रेष्ठता, और प्रजाति की बात होती रही । अण्डज संसार पुष्ट होता हुआ जलचर, भूचर, नभचर रुप में स्थापित होता ही रहा । अण्डज संसार की प्राणकोषाओं से पिण्डज संसार की प्राणकोषायें विकसित हुई । इन पिण्डज संसार में अधिकांश भूचर हुए, जबकि अण्डज संसार में भूचर, जलचर, खेचर तीनों हुए । इसमें से अण्डज संसार में नभचर अधिक हुए, इसके अनन्तर जैसे ही पिण्डज संसार आया, भूचर अधिक हुए । नभचर और जलचर में पिण्डज न्यून प्रजातियों को मिली । इसके बाद इस क्रम में पिण्डज संसार में बहुत प्रजातियाँ विकसित होते हुए अंतिम प्रजाति के रुप में मानव शरीर रचना की परम्परा विकसित हुई ।

जीवन व शरीर का संयुक्त रूप में मानव परम्परा में कल्पनाशीलता, कर्म स्वतंत्रता वश जीवों से भिन्न कार्य गतिविधियाँ मानव से सम्पन्न होना शुरु हुई । जैसे पेड़ काट देना, पत्थर को फोड़ देना, मिट्टी को खोद देना, यहाँ से प्रारंभ कर घर बनाना, कपड़ा बनाना, बच्चों को पालने में जीवों से

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