तृप्ति बिन्दु का अभाव पुनः विकल्पात्मक स्वीकृतियाँ, इसी क्रम में सहअस्तित्व मानव सम्मुख प्रस्तुत हुई ।
इसमें विचारणीय बिन्दु यही है प्राणकोषायें, मानव शरीर रचना को बनाने के संबंध में काफी अध्ययन हो चुका है । यह भी मानव स्वीकारने योग्य हो चुका है कि आशा, विचार, इच्छा पूर्वक, प्रमाण और संकल्प पूर्वक जीना ही होगा । यह स्वभाविक प्रक्रिया में आ चुका है । इसी के आधार पर हम इस बात को परिशीलन करने पर तुले हैं कि मानव के शरीर रचना में परिवर्तन हुई अथवा क्रियाकलाप में परिवर्तन हुई अथवा ज्ञान विधि में ।
परिशीलन का आधार मानव होगा और जीता हुआ मानव ही होगा । मानव के मरे हुए शरीर के निरीक्षण परीक्षण से इन हड्डी, नसों, मांसपेशियों का संतुलन कैसे बना रहता है, बिगड़ने पर क्या-क्या परेशानी होती है, इसका अध्ययन होता है । किन्तु मानव संतुलित रहने के लिए मानसिकता और शरीर के तालमेल आवश्यक है । इस बात को हर ज्ञानी, विज्ञानी, विशेषज्ञ और सामान्य मानव स्वीकारते हैं । मानसिकता ही रोग और कष्ट को प्रगट करता है, स्पष्ट करता है । शरीर में जो कुछ परेशानी है, व्यतिरेक है, उसको पहचानने के लिए मानसिकता का प्रयोग आवश्यक है । मानसिकता ही सबको पहचान पाती है । इसके विपरीत, यंत्र पहचानते हैं इसका दावा हम करते हैं । यहीं से स्वास्थ्य संबंधी मामला यंत्र के अधीन हो गया, जबकि यंत्र किसी एक या एक से अधिक मानव से ही योजित-नियोजित, उत्पादित वस्तु है । इसमें मानव की मानसिकता नियोजित रहती ही है । जितने अपेक्षा से नियोजन होता है, उससे कम में ही यंत्र तैयार हो पाता है । इस बात को हम इस ढंग से प्रस्तुत करते हैं, किसी यंत्र के प्रयोजन को हम गणितीय विधि से 100 आंकते हैं तो उसमें से 75 और उससे कम में ही विश्वास रखना चाहिए, उपयोग करना चाहिए । इस भाग को यंत्र की सुरक्षा का भाग भी माना जाता है यंत्रों में जो कुछ भी संकेत मिलता है, इसको पढ़ने वाला भी मानव ही है । जिसको पढ़ना है, अपने मानसिकता सहित ही पढ़ पाता है, आदि काल से यह माना गया कि बेईमानी के बिना व्यापार चलता नहीं । अगर यही सूत्र हो तो इन सब उपक्रमों की क्या हालत होगी, शोध और सोचने का मुद्दा है ।
दूसरी विधा में जो आयुर्वेद है, यूनानी विधि है, ये करीब-करीब आधार रुप में एक ही है, नाड़ी और दोष पर धड़कन और धड़कन के ध्वनि को सुनते हुए शरीर की आवाज को सुनने की कोशिश, उसके आधार पर शरीर के कष्ट और व्यतिरेकों का अनुमान, स्वीकृति, उसके आधार पर दवाइयों की योजना, प्रयोग, सफलता पर विश्वास करना होता है ।