मानव का बहुमुखी उपयोगी होना देखा गया । ऐसी चाहत हर मानव में है ही । इसीलिए ऐसे वैभव सार्थक होने की सम्भावना समझ में आती है ।

समझदारी के साथ मानव का स्वास्थ्य संयम विधा में भागीदारी करना एक स्वभाविक प्रक्रिया है । इसके साथ ही शिक्षा संस्कार, न्याय सुरक्षा, उत्पादन कार्य, विनिमय कार्यों में भागीदारी करना सभी समझदार मानव का कर्त्तव्य एवं दायित्व हो पाता है । समझदारी के साथ कर्त्तव्य और दायित्व स्वीकृति सहज रुप में प्रमाणित हो जाता है । समझदारी के अनन्तर अर्थात् सहअस्तित्ववादी ज्ञान, विज्ञान, विवेक संपन्नता के उपरान्त दायित्व और कर्त्तव्य को स्वीकारने में देरी होती ही नहीं, यह स्वयं स्फूर्त विधि से प्रमाणित होती, प्रगट होती है । इन सबको भली प्रकार से परीक्षण, निरीक्षण कर निश्चित किया गया है । हर नर-नारी इसको परीक्षण पूर्वक सत्यापित कर सकते हैं, यह मानव परम्परा के लिए महत्वपूर्ण प्रेरणा रही है ।

हर मानव जीवन और शरीर के संयुक्त रुप में प्रकाशमान, विद्यमान है । हर मानव अपने स्वीकृति के आधार पर ही निर्णय लेकर जीता रहता है । ऐसे विचार पूर्वक निर्णय लेने के मूल में ज्ञान, विज्ञान, विवेक के संतुलन को अनुभव करना, स्वीकार करना, प्रमाणित करने के लिए प्रवृत्त होना और प्रमाणित करना । प्रमाणित करने का क्रम और प्रक्रिया समग्र व्यवस्था में भागीदारी के रुप में ही होना पाया जाता है । ऐसी प्रमाण परम्परा पीढ़ी से पीढ़ी आश्वस्त विश्वस्त होने के लिए प्रेरक होती ही है । ऐसी आवश्यकता सदा-सदा मानव परम्परा में बनी ही रहती है ।

उक्त विधि से परीक्षण, निरीक्षण करने पर पता चलता है कि जीवन के आधार पर शरीर का संचालन हो पाता है, न कि जीवन का संचालन शरीर के अनुसार । इसे ऐसा भी स्पष्ट किया जा सकता है कि समझदार मानव अपने समझदारी के अनुसार शरीर को संचालित करता हुआ देखने को मिलता है और समझदारी मानव का वर है, अधिकार है, वर्चस्व है, इसीलिए समझदारी सर्व वांछित लक्ष्य है । समझदार मानव अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था के अर्थ में ही हर कार्य, व्यवहार, विचारों को प्रस्तुत कर पाता है । इसके फल परिणाम में जीवनापेक्षा, मानवापेक्षा सफल हो पाता है । इसीलिए मानव लक्ष्य को पहचानने के उपरान्त उसकी सार्थकता के अर्थ में जितने ही कार्य विन्यास होते है, कृत, कारित, अनुमोदित भेदों से, कार्यों का फल परिणाम, मानव लक्ष्य को प्रमाणित करने की स्थिति में व्यवस्था में जीना स्वभाविक है । इसीलिए समझदार मानव के अध्ययन से यही स्पष्ट होता है कि समझदार मानव जीवन अनुसार शरीर को चलाता है । दूसरी भाषा में समझ के आधार पर शरीर संचालित होता है । अतएव इस पर हम विश्वास

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