महिमा नित्य समाधान, नित्य सुख, शान्ति, संतोष, आनन्द के रुप में सत्य को स्वीकारने, प्रमाणित करने और आनन्द रुपी आश्वासन से परिपूर्ण होने की क्रिया है । ये पाँचों क्रियायें जीवन बल के रुप में कार्य करता हुआ स्पष्ट होता है । अनुभव ही प्रमाण है । इसका फलन आनन्द है । जीवन स्वत्व है, इसको प्रमाणित करने के क्रम में संकल्प, संकल्प को परावर्तित करने के लिए चित्रण, चित्रण को सार्थक बनाने के लिए विश्लेषण, विश्लेषण को क्रियान्वयन करने के लिए चयन (तौर-तरीका का चयन) पूर्वक प्रमाणित करता हुआ मानव को पहचाना जा सकता है । इस विधि से ये पाँचों परावर्तित होने वाली क्रियाओं को शक्ति नाम दिया गया । इसी बल को स्थिति, परावर्तित करने वाले क्रिया को गति नाम दिया है । इस प्रकार जागृत मानव का स्थिति, गति, जीवन क्रियाकलाप के आधार पर अर्थात् जीवन के स्थिति गति के आधार पर परस्पर पहचानने में आता है । शरीर रचना के अनुसार मानव का पहचान होता ही नहीं, न कभी होगा । इसीलिए हमें जीवन में परिवर्तन पर ध्यान देना बनता है । परिवर्तन आज तक के प्रधान शोध, अनुसंधान से साकार होने की गतिविधियाँ सुस्पष्ट हो चुकी हैं । शेष भाग मनः स्वस्थता है, उसे सहअस्तित्ववादी दृष्टिकोण से सुस्पष्ट होने वाली ज्ञान, विज्ञान, विवेक सम्पन्नता पूर्वक अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी पूर्वक मानव आँकाक्षा और जीवन आकाँक्षा को सार्थक बना सकते हैं । इसे हर नर-नारी प्रयोग पूर्वक प्रमाण प्रस्तुत कर सकते हैं ।
17. ज्ञान, ज्ञाता, ज्ञेय
दर्शन (न्याय, धर्म, सत्य), दृष्टा (मानव जीवन), दृश्य (सहअस्तित्व),
ध्यान (जागृति), ध्याता (मानव), ध्येय (भ्रम मुक्ति, जीवन मूल्य, मानव लक्ष्य सहज प्रमाण),
कारण (ज्ञानावस्था), कर्ता (मानव), कार्य (अखण्डता, सार्वभौमता में भागीदारी),
साध्य (दृष्टा पद, जागृति), साधक (मानव), साधन (शरीर व जीवन)
ज्ञान, ज्ञाता, ज्ञेय के मुद्दे पर अध्यात्मवादी, अधिदैवी वादी, अधिभौतिक वादी नजरिये से सुदूर विगत में ही सोचना मानव परम्परा में ख्यात रहा अथवा विदित रहा । इन तीनों विधाओं का एकत्रित नामकरण आदर्शवाद रहा । इन तीनों में समानता का बिन्दु रहस्य ही है । भौतिकता से अधिक वाला भी एक रहस्य । देवता अपने में एक रहस्य, अध्यात्म अपने आप में रहस्य है ।