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तक परिपूर्ण व्यवस्था है । यह “नियम-त्रय” के पालन अनुसरण एवं अनुशीलनपूर्वक सफल है अन्यथा असफल है ।

योग्याभ्यास - मिलन का अभ्यास । मिलन के अनन्तर स्वीकृति जीवन जागृति के रूप में, विकृति अमानवीयता के रूप में दृष्टव्य है ।

प्रत्येक मानव प्रबुद्धता के लिये प्रयासरत है । प्रबुद्धता का प्रत्यक्ष रूप ही मानवीयता पूर्ण आचरण है । मानवीयता तथा अतिमानवीयता ही व्यवस्था पूर्वक वैभव है, पूर्ण है ।

जीवन का कार्यक्रम ही कर्म है । यही आचरण है ।

समृद्धि, कला और बोध के लिये आचरण मानवीयतापूर्ण मानव में पाया जाता है ।

सत्य बोध एवं सहजता के लिये आचरण मानवीयता एवं दिव्य मानवीयतापूर्ण मानव में प्रत्यक्ष है, जो उनका स्वभाव है ।

मानव के लिए मानवीयता एवं अतिमानवीयतापूर्ण आचरण ही नितांत उपयोगी एवं आवश्यक है ।

मानव की पाँचों स्थितियाँ परस्पर पूरक हैं । इनकी एकसूत्रता ही अखण्ड सामाजिकता है । यह “नियम-त्रय” पालन सर्व सामान्य होने से है ।

प्रत्येक आविष्कार एवं अनुसंधान व्यक्ति मूलक उद्घाटन है । यह शिक्षा एवं प्रचार के माध्यम से सर्व सुलभ हो जाता है । यही सर्व-सामान्यीकरण प्रक्रिया है ।

जिसका विभव एवं वैभव है उसी का आविष्कार है क्योंकि उसके पहले उसका स्पष्ट ज्ञान मानव कोटि में था ही नहीं । उस समय में अर्थात् सन् 2000 से पहले जो समझ मानव समुदायों में रहा उसकी तुलना में मध्यस्थ दर्शन आविष्कार, अनुसंधान है ।

सहअस्तित्व में, से, के लिए प्रकटन ही आविष्कार है । आविष्कार की सामान्यीकरण प्रक्रिया ही शिक्षा यही चेतना विकास मूल्य शिक्षा है ।

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