इसी प्रकार दृष्टा, दृश्य, दर्शन की भी सार्थक व्याख्या हो पाती है । दृष्टा पद में जीवन, दृश्य पद में सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व, दर्शन के अर्थ में अस्तित्व दर्शन के रूप में सार्थक व्याख्या होना हो जाता है ।

ध्यान, ध्याता, ध्येय भी इसी क्रम में स्पष्ट होता है । ध्येय जागृति के रूप में, ध्यान समझदारी से सम्पन्न होने; समझदारी को प्रमाणित करने के क्रम के रूप में, ध्याता जीवन के रूप में पहचानने की व्यवस्था है ।

कर्त्ता, कार्य, कारण भी स्पष्ट है । कर्त्ता पद में जीवन, कार्य पद में मानव; देव मानव; दिव्य मानव पद-प्रतिष्ठा, कारण के रूप में सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व नित्य प्रतिष्ठा है ।

साध्य, साधन, साधक के रूप में जो सोचा जाता था, सहअस्तित्व वादी नजरिये से साधक को पहचानने का तरीका बहुत आसान, प्रयोजन से जुड़ा हुआ होना पाया जाता है । सहअस्तित्ववादी नजरिये से साधक मानव के रूप में पहचानने में आता है । साध्य के रूप में जीवन जागृति सुलभ हो पाता है । मानव स्वत्व, स्वतंत्रता, अधिकार के रूप में जागृति ही पहचानने में आता है । ऐसे स्वत्व, स्वतंत्रता, अधिकार, समझदारी के रूप में और ऐसी समझदारी ज्ञान, विज्ञान, विवेक रूप में पुनः स्वत्व, स्वतंत्रता, अधिकार वैभवित होना पाया जाता है । यही जागृति का प्रमाण है । इस प्रकार साध्य कितना सार्थक है अर्थात् जागृति रूपी साध्य कितना सार्थक है, हर व्यक्ति सोच सकता है । साधन के रूप में शोध, अनुसंधान के लिए कल्पनाशीलता, कर्मस्वतंत्रता, परम्परा रूप में प्रमाण, यही साधन है । प्रमाण सम्पन्न परम्परा अर्थात् प्रमाण और प्रमाणिकता के धारक वाहक के रूप में मानव परम्परा जब अपने को प्रमाणित कर पाती है, उसी समझ में सार्वभौम व्यवस्था, अखण्ड समाज का प्रमाण बना ही रहता है । सार्वभौम व्यवस्था में प्रमाणित होने में भागीदारी करना ही प्रमाण सर्वसुलभ रहता है । सार्वभौम व्यवस्था के अंगभूत रूप में ही मानवीय शिक्षा संस्कार वैभवित होना पाया जाता है । मानव परम्परा में सार्वभौमता का वैभव ज्ञान, शिक्षा संस्कार पूर्वक ही सार्थक होना पाया जाता है । यही प्रमाण परंपरा का तात्पर्य है । ऐसे भी सामान्य सर्वेक्षण से पता लगता है, सार्वभौम अर्थात् सर्वमानव में स्वीकृति । सहअस्तित्ववादी विधि से जितने भी विधा में अभ्यास, अध्ययन, कार्य, व्यवहार व्यवस्था में प्रमाण की कतार बना है, उसे हृदयंगम करना, अपने में जाँच पाना, सार्थकता-निरर्थकता को निश्चय कर पाना, हर नर-नारी के लिए अति सुगम होना पाया गया।

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