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प्रत्येक परस्परता में अपेक्षायें समाहित हैं । मूलतः यही सापेक्षता है । यही आवश्यकता है ।

ज्ञानगोचर, दृष्टिगोचर के आधार पर ही प्रत्यक्ष, अनुमान एवं आगम क्रिया का वर्गीकरण एवं निर्धारण है ।

सान्निध्य की निरंतरता का अनुभव ही प्रत्यक्ष, सान्निध्य की निरंतरता की संभावना ही अनुमान, सान्निध्य संभावना के अतिरिक्त अस्तित्व ही आगम क्रिया है ।

प्रकृति की अनन्तता एवं सत्ता में पूर्णता ही अनुमानातिरिक्त अस्तित्व का प्रमाण है ।

स्थूल, सूक्ष्म एवं कारण भेद से प्रत्यक्ष क्रियायें हैं ।

सामान्य बुद्धि से स्थूल, विशेष बुद्धि से सूक्ष्म, विशिष्ट बुद्धि से कारण का प्रत्यक्षीकरण प्रसिद्ध है । इसी के आधार पर अनुमान और आगम क्रिया का भी स्थूल, सूक्ष्म और कारण रूप में रहने का प्रमाण सिद्ध होता है । रूप और गुण स्थूल; गुण और स्वभाव सूक्ष्म; स्वभाव और धर्म कारण क्रियायें है । इसलिये

व्यवहार उत्पादन कर्मों में तीन स्तर में प्रवृत्तियों को पाया जाता है :- (1) स्वतंत्र (2) अनुकरण (3) अनुसरण ।

स्वतंत्र प्रवृत्तियों की क्रियाशीलता उन परिप्रेक्ष्यों में स्पष्ट होती हैं जिनके संबंध में ये विशेषज्ञता हैं ।

जो विशेषज्ञ होने के लिये इच्छुक हैं उन्हें अनुकरण क्रिया में व्यस्त पाया जाता है ।

जिनमें विशेषज्ञता के प्रति इच्छा जागृत नहीं हुई है उन्हें अनुसरण क्रिया में अनुशीलनपूर्वक ही कर्म एवं व्यवहार रत पाया जाता है । ये विकास एवं अवसर के योगफल का द्योतक है । अवसर प्रधानतःव्यवस्था एवं शिक्षा ही है ।

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