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स्वतंत्र-सक्रियता स्थूल, सूक्ष्म एवं कारण क्रिया की सान्निध्यानुभूति-क्षमता से; अनुकरणात्मक सक्रियता स्थूल एवं सूक्ष्म क्रिया की सान्निध्यानुभूति क्षमता से; अनुसरणात्मक-सक्रियता स्थूल क्रिया की अनुभूति-क्षमता से सम्पन्न पायी जाती है । यही व्यंजनीयता की क्षमता में प्रत्यक्ष अन्तरान्तर है ।

स्वतंत्र सक्रियता में नियंत्रण-क्षमता स्वायत्त, अनुकरण-क्षमता में स्वेच्छा से नियन्त्रित होने की क्षमता, अनुसरण सक्रियता में अनुशासित होने की क्षमता समाहित है ।

सार्वभौमिक कामनानुरूप कार्यक्रम में रत होने से ही सभी स्थितियों में दोष दूर होते हैं । यही मांगल्यप्रद है ।

पर-धन, पर-नारी/पर-पुरूष एवं पर-पीड़ा ही व्यवहारिक, सामाजिक एवं भौतिक उन्नति तथा जागृति में बाधक है ।

राग, द्वेष, अविद्या एवं अभिमान बौद्धिक जागृति में अवरोधक सिद्ध हुए हैं ।

भय, आध्यात्मिक अनुभूति (सह-अस्तित्वानुभूति) योग्य क्षमता के विकास में अवरोधक है ।

प्राकृतिक वैभव के अपव्यय से ऋतु-असंतुलन एवं उससे क्लेशोदय होता है, जो प्रत्यक्ष है ।

स्व-धन,स्वनारी/स्व पुरूष एवं दयापूर्ण कार्य व्यवहार तथा आचरण से सामाजिक सुख एवं संतुलन का; असंग्रह (समृद्धि), स्नेह, विद्या एवं सरलता से बौद्धिक सुख का; अभयता से आध्यात्मिक आनन्द का अनुभव है । यही भौतिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिकता का प्रयोजन, विचार एवं अनुभूति, व्यक्ति का, व्यक्ति-परिवार-समाज-राष्ट्र एवं अन्तर्राष्ट्र की एक सूत्रता, संतुलन, समाधान एवं समृद्धि है । यही सार्वभौमिक साम्य कामना है ।

समस्त कर्मों से मानव ने सत्य में प्रतिष्ठा, धर्म में आरूढ़ता, न्याय में निरन्तरता एवं वस्तु की उपयोगिता का अनुभव करने की कामना एवं प्रयास किया है । जिसके लिये सत्याभिमुखी, धर्माभिमुखी, न्यायाभिमुखी तथा विषयाभिमुखी प्रयास किये हैं । यह प्रत्यक्ष है ।

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