वृत्ति, इच्छा से सम्पन्न चित्त का अनुभव करती है । इच्छा से सम्पन्न चित्त, विचार से सम्पन्न वृत्ति का दर्शन करता है ।
शुभ इच्छा से सम्पन्न चित्त, सत्संकल्प से सम्पन्न बुद्धि सहअस्तित्व में अनुभवपूर्ण आत्मा जागृति का प्रमाण है । अनुभवपूर्ण आत्मा, संकल्प सम्पन्न बुद्धि का दर्शन करती है । यही अनुभव समुच्चय है । यही पूर्ण जागृति है ।
अधिक जागृत, कम जागृत का दर्शन; कम जागृत, अधिक जागृत को पहचानता है । इसलिए जागृत मानव जागृति के लिए जिज्ञासु को पहचानता है और जिज्ञासु जागृत को पहचानता है ।
जागृत मानव जिज्ञासु पर विश्वास करता है और जिज्ञासु जागृत मानव के साथ अनुशासित रहता है ।
मानव जीवन में ही स्थूल, सूक्ष्म, कारण संबद्ध विशेषताये दृष्टव्य हैं । इन तीनों स्थितियों में सुख, शांति, संतोष एवं आनन्द की ही अपेक्षा है ।
मानव का स्थूल जीवन सुख व शांति की अपेक्षा में, सूक्ष्म जीवन शांति व संतोष की अपेक्षा में एवं कारण जीवन आनन्द एवं परमानन्द की प्रतीक्षा में हैं जिसके लिए यह जागृति सहज प्रमाण है । इसी के अनुकूल सर्वतोमुखी कार्यक्रम ही जागृति है । यही भौतिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक उपलब्धियाँ भी हैं । यह केवल मानवीयता एवं अतिमानवीयतापूर्ण कार्यक्रम पूर्वक सफल हुआ है ।
जड़-चैतन्यात्मक प्रकृति में पाई जाने वाली शक्तियों की प्रयुक्ति एवं नियोजन उद्भव, विभव एवं प्रलय में ही है । इससे अधिक परिप्रेक्ष्य में गुण नियोजन एवं प्रयुक्ति नहीं है ।
सम्पूर्ण नियोजन का आद्यान्त अभीष्ट जागृति पूर्णता ही है ।
इकाई सहज जागृतिपूर्णता में ही संबोधन-क्षमता प्रकट हुई है ।