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पक्षपात बुद्धि पर-पक्ष के सद्गुणों को ग्रहण करने में असमर्थ होती है क्योंकि वह ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, उपेक्षा और भ्रम से मुक्त नहीं है ।

जागृति क्रम में स्व-पर पक्ष की स्थिति नहीं पाई जाती है इसलिये उसमें श्रृंखला-क्रम, नियम, न्याय सिद्ध होता है । समस्या का कारण ही अप्रबुद्धता है । उसका निवारण केवल प्रबुद्धता है, जो जागृति ही है । यही उपासना की प्रत्यक्ष गरिमा है ।

उपासना के लिये वातावरण का महत्व अपरिहार्य है, जिसमें से मानव कृत वातावरण ही प्रधान है, जो शिक्षा व व्यवस्था के रूप में ही है ।

प्रबुद्धता से परिपूर्ण शिक्षा ही व्यक्तित्व के लिये दिशा प्रदायी महिमा है । उसके समुचित संरक्षण, संवर्धन के लिये योग्य व्यवस्था ही प्रभुसत्ता है ।

प्रबुद्धता की सामान्यीकरण प्रक्रिया ही गुणात्मक परिवर्तन का प्रत्यक्ष रूप है । एक व्यक्ति जो उपासना पूर्वक प्रबुद्ध होता है, वह शिक्षा और व्यवस्था पूर्वक सामान्य हो जाता है ।

गुणात्मक परिवर्तन के नजरिया न होने की स्थिति में मात्रा के आधार पर मूल्यांकन करने में भ्रमित मानव तत्पर होता है । यही वर्ग संघर्ष एवं समर है ।

मानवीयता पूर्ण व्यवहार सहज “नियम-त्रय” का आचरण ही व्यक्तित्व है । ऐसे व्यक्तित्व के निर्माण में सक्रिय योगदान ही कर्त्तव्य है । यही पुरूषार्थ है । यही प्रबुद्धता है ।

उपासना व्यक्ति में व्यक्तित्व तथा कर्त्तव्य का प्रत्यक्ष रूप प्रदान करती है क्योंकि उपासना स्वयं में शिक्षा एवं व्यवस्था सहज है । इसलिये यही प्रबुद्धता है । प्रबुद्धता ही मानव में शिक्षा एवं व्यवस्था है ।

सत्य व सत्यता में वैविध्यता नहीं है ।

प्रतीकता में अनेकता है ही । उसके द्वारा केवल भ्रम ही इंगित होता है ।

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