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की संभावना न्यून हो गयी हैं । प्राणवायु की मात्रायें शनैः-शनैः घटने लगी हैं, प्राणवायु विरोधी द्रव्य बढ़ने लगा है, इसी को हम प्रदूषण कह रहे हैं ।

ऐसी स्थिति में ब्रह्माण्डीय किरण जो पानी बनने के लिए संयोजक रहा है, ऐसे प्रदूषण के संयोजन वश इसके विपरीत घटना का कारण (पानी के विघटन का कारण) बन सकता है । ऐसी स्थिति में मानव का क्या हाल होगा ? इस भीषण दुर्घटना का धरती के छाती पर हम जितने भी विज्ञानी ज्ञानी, अज्ञानी कहलाते हैं, प्रौद्योगिकी संसार के कर्णधार कहलाते हैं, क्या इनके पास इसका कोई उत्तर है । इस बात का उत्तर देने वाला कोई दिखता नहीं । क्योंकि, जिम्मेदारी कोई स्वीकारता नहीं । यही इसका गवाही है । जिम्मेदारी स्वीकारने में परेशानी है, क्योंकि व्यक्ति प्रायश्चित के लिए उत्तर दायी हो जाता है । इसलिए इसके सुधार के लिए प्रयास ही एकमात्र कर्त्तव्य लगता है । इसकी औचित्यता अधिकाधिक लोगों को स्वीकार होता है ।

चौथी विपदा धरती के ताप ग्रस्त होने के आधार पर धरती के चुम्बकीय प्रभाव क्षेत्र का विचलित होना भी एक संभावना है । इस धरती में उत्तर और दक्षिणी ध्रुव के बीच, स्वयं स्फूर्त विधि से चुम्बकीय धारा अथवा चुम्बकीय प्रभाव क्षेत्र बना हुआ है । इस बात को भी स्वीकारा गया है। इसी आधार पर दिशा सूचक यंत्र तंत्र बनाकर प्रयोग कर चुके हैं । इस विधि से जो ध्रुव से ध्रुव अपने संबद्धता को बनाये रखा है, इसके आधार पर ही धरती के ठोस होने का अविरल कार्य संपादित होता रहा । इससे धरती के परत से परत ऊष्मा संग्रहण, पाचन, संतुलनीकरण संपादित होती रही । इससे धरती का स्वास्थ्य, ताप के रूप में संतुलित रहने की व्यवस्था बनी रही है । अभी धरती के असंतुलित होने की घोषणा तो मानव करता है, किन्तु उसके दायित्व को स्वीकारता नहीं, इसलिए उपायों को खोजना बनता नहीं, फलस्वरूप निराकरण होना बनता नहीं। इस क्रम में आगे और धरती में ताप बढ़ने की संभावना को स्वीकारा जा रहा है यह इस बात के लिए आगाह करता है - ध्रुव से ध्रुव तक संबद्ध चुम्बकीय धारा, किसी ताप तक पहुँचने के बाद, विचलित हो सकती है, इससे यह धरती अपने आप में ठोस होने के स्थान पर बिखरने लग जाना स्वभाविक है । यह बिखर जाने के बाद धूल के रूप में मानव की कल्पना में आता है। इसके उपरान्त मानव कहाँ रहेगा, जीव जानवर कहाँ रहेंगे, हरियाली कहाँ रहेगी, पानी कहाँ रहेगा, पानी की आवर्तनशीलता की व्यवस्था कहाँ रहेगा । ये सब विलोम घटनायें मानव के मानस को काफी घायल करने के स्थिति में तो हैं ।

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