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प्रकाश के कारण है । इसमें समाधान का सूत्र हम स्वयं मानव में ही पहले कदम में ही मिल जाता है । मानव देह की निश्चित ऊष्मा (तापमान) विधि बनी हुई है । उसे हम अपने मापदंड के अनुसार 98-99 फारेनहाइट रखते हैं । मापदंड का नाम थर्मामीटर माना जा रहा है । इस तथ्य को धरती पर जीता जागता मानव में देखा गया है कि जहाँ 00 फारेनहाइट से नीचे तापमान है, वहाँ भी मानव रहता है, वहाँ के मानव शरीर की तापमान भी उसी सामान्य तापमान के रूप में नापा जाता है । इस धरती पर 1200 फारेनहाइट से अधिक ताप प्रभावित है, वहाँ भी मानव शरीर का वही सामान्य तापमान मापा जा रहा है, तभी मानव को स्वस्थ कहा जा रहा है । वातावरण के अनुसार ताप यदि बदल जाता है तो रोगी कहलाता है अथवा मर गया कहा जाता है । इस प्रमाण के आधार पर धरती का स्वास्थ्य भी विचार किया जा सकता है । धरती के वातावरण में जो ब्रह्माण्डीय किरण और ताप परावर्तित होकर धरती को स्पर्श करता है, इससे धरती का तापमान न बढ़ने, न घटने के लिए ताप पाचन व्यवस्था को धरती अपने स्वयं में से संतुलन बनाये रखना पहले वर्णित हो चुकी है । यह कोयले के परत के रूप में धरती में समायी हुई है । मानव अपने अविवेक वश और प्रलोभन वश धरती का पेट फाड़ दिया, कोयले को निकाल लिया, धरती तापग्रस्त हो गयी । कोई भी विज्ञानी और प्रौद्योगिकी संसार इस जिम्मेदारी को स्वीकारने को तैयार नहीं है । इसका उपचार दर किनार रहा । इस विधि से हम कहाँ पहुँचेंगे, क्या हो सकता है ? पहले दुष्परिणाम का स्वरूप है कि धरती किसी तादात् से तप्त होने के उपरान्त इस धरती पर हरियाली जीव-जानवर, मानव रह नहीं पायेंगे । दूसरी स्थिति में धरती के ताप ग्रस्त होने के उपरान्त उत्तर, दक्षिणी ध्रुव में जितनी भी बर्फ संग्रहीत हैं उस सबके पिघलने के स्थिति में ऊँचे-ऊँचे पर्वत शिखरों को छोड़कर सभी जगहों में जल मग्न की स्थिति हो सकती है । ऐसी स्थिति में मानव की क्या हालत हो सकती है, सभी सोच सकते हैं । तीसरे दुष्परिणाम की स्थिति यह भी हो सकती है कि इस धरती पर जब कभी पानी के रूप में यौगिक क्रिया संपादित हुआ, तब एक जलने वाले, एक जलाने वाले द्रव्य के सहज रूप में जुड़ने की स्थिति बनी ही होगी । उस समय जलने वाले, जलाने वाले उप द्रव्य दोनों को सामान्य बनाये रखने के लिए एकमात्र ब्रह्माण्डीय किरण ही उपादेय रहा है । ऐसे ब्रह्माण्डीय किरण बनाम विकिरण और विकिरणीयता के संसार को आज का मानव पहचान चुका है । इस बात को ध्यान में रखने पर निम्न वर्णित कल्पना ध्यान में आती है, भले ही उक्त घटना घटित न हो । आज हम अपने ही अविवेक और प्रलोभन वश धरती को ताप ग्रस्त करते जा रहे हैं, परिणाम में धरती की सुरक्षा

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