इसके उपचार का उपक्रम यही है कि कोयले और खनिज तेल से जो-जो काम होना है, उसका विकल्प पहचानना होगा । कोयला और खनिज तेल के प्रयोग को रोक देना ही एकमात्र उपाय है । इसी के साथ विकिरणीय ईंधन प्रणाली भी धरती और धरती के वातावरण के लिए घातक होना, हम स्वीकार चुके हैं । विकिरण विधि से ईंधन घातक है, कोयला, खनिज विधि से ईंधन भी घातक है । इनके उपयोग को रोक देना मानव का पहला कर्त्तव्य है । दूसरा कर्त्तव्य है मानव सुविधा को बनाये रखने के लिए ईंधन व्यवस्था के विकल्प को प्राप्त कर लेना । यह विकल्प स्वभाविक रूप में दिखाई पड़ता है - प्रवाह बल को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर लेना । इस अकेले स्रोत के प्रावधान से, प्रदूषण रहित प्रणाली से, विद्युत ऊर्जा आवश्यकता से अधिक उपलब्ध हो सकती है । इसी के साथ समृद्ध होने के लिए हवा का दबाव, समुद्र तरंगों का दबाव, गोबर गैस, प्राकृतिक गैस जो स्वभाविक रूप में धरती के भीतर से आकाश की ओर गमन करती रहती है, ऐसे सभी स्रोतों का भरपूर उपयोग करना मानव के हित में है, मानव के सुख समृद्धि के अर्थ में है । कुछ ऐसे यंत्र जो तेल से ही चलने वाले हैं, उनके लिए खाद्य, अखाद्य तेलों (वनस्पति, पेड़ों से प्राप्त) को विभिन्न संयोगों से यंत्रोपयोगी बनाने के शोध को पूरा कर लेना चाहिए । तभी मानव यंत्रों से प्राप्त सुविधाओं को बनाये भी रख सकता है । ईंधन समृद्धि बना रह सकता है । तैलीय प्रयोजनों के लिए जंगलों में तैलीय वृक्षों का प्रवर्तन किया जाना संभव है ही, सड़क, बाग बगीचों में भी यह हो सकता है । किसानों के खेत के मेंड़ पर भी हो सकता है, यह केवल मानव में सद्बुद्धि के आधार पर संपन्न होने वाला कार्यक्रम है । धरती के ऊपरी सतह में विशाल संभावनायें है, ऊर्जा स्रोत बनाने की, ईंधन स्रोत बनाने की । दबाव स्रोत, प्रवाह स्रोत, सौर्य ऊर्जा स्रोत, ये सब स्वभाविक रूप में प्रचुर मात्रा में हैं ही । इनके साथ ही तैलीय वृक्षों के विपुलीकरण की संभावना धरती पर ही है । धरती के भीतर ऐसा कुछ भी स्रोत नहीं है । जो है केवल धरती को स्वस्थ रखने के लिए है । यदि सही परीक्षण, निरीक्षण करें तो धरती के सतह पर ही संपूर्ण सौभाग्य स्रोत है । धरती के भीतर, ऊपरी हिस्से के समान या सदृश्य कोई स्रोत दिखाई नहीं पड़ती ।
इसी क्रम में और भी एक तथ्य याद रखने योग्य है । धरती के पाताली जल स्रोत के ओर दृष्टि गयी, कुल 25-30 वर्ष में ही सर्वाधिक जगह में पाताली जल स्रोत क्षीण हो गया । फलस्वरूप, ऊपरी जल स्रोत सूख गया तालाब, बावड़ी सूख गये । मानव बर्बादी की ओर चल दिया । इस मुद्दे पर थोड़ा सा ध्यान दें । धरती के ऊपरी हिस्से में जितनी विशालता है, हरेक 10 फुट में विशालता घटती जाती है । इसको परीक्षण, निरीक्षण हर विद्यार्थी कर सकता है । जैसे एक गोल