सहअस्तित्ववादी शिक्षा क्रम समीचीन है । अतएव समझदार मानव होने के लिए ध्यान देने की आवश्यकता है ।
सहअस्तित्ववादी विचार, ज्ञान, विवेक, विज्ञान को समझना ही समझदारी है । क्योंकि आदर्शवाद और भौतिक वाद के अनुसार जितना जीये, समझे, उससे कोई सर्वशुभ विधि प्रतिपादित नहीं हो पायी । इसे स्पष्ट रूप में रेखांकित कर लेने की आवश्यकता है । सर्वशुभ का स्रोत सहअस्तित्ववादी ज्ञान, विचार रूपी विज्ञान, विवेक ही है । इसे बहुत आसानी से समझ भी सकते हैं, समझा भी सकते हैं । जीने दे सकते हैं, जी भी सकते हैं हम हर व्यक्ति समझदारी की स्थिति गति में प्रमाणित हो सकते हैं, और लोगों को प्रमाणित होने के लिए प्रवृत्त कर सकते हैं । यही समझदारी का लोकव्यापीकरण विधि है, सम्पूर्ण मानव का स्थिति गति में प्रमाणित होना । सम्पूर्ण स्थितियाँ सार्वभौमिक और अखंड समाज संबंध के रूप में स्पष्ट है । इन सभी सोपानों में भागीदारी करना ही प्रमाण का तात्पर्य है । ऐसे प्रमाण मानव में, से, के लिए अनुभव मूलक विधि से परावर्तित होते हैं । ऐसे अनुभवमूलक प्रमाण सार्वभौम होते हैं, इसके लिए जीकर देखना ही एकमात्र उपाय है ।
मानव विज्ञान विधा में पारंगत होना चाहता है । पारंगत होने में अभी तक की प्रायोगिक, व्यवहारिक अड़चन यही दो मुद्दे में सिमटा । पहला, अंतिम सत्य का अता-पता नहीं हो पाया, दूसरा मूल मात्रा, ऊर्जा स्रोत व लक्ष्य का पता नहीं चल पाया, तीसरा - मानव का अध्यययन न हो पाना, चौथा - अस्तित्व का प्रयोजन स्पष्ट न हो पाना रहा । इस ढंग से विज्ञान में इतना लम्बी चौड़ी निष्ठा से प्रयोग करने के उपरान्त भी सभी स्पष्ट रूप से जीना चाहने वाले कुंठित हो बैठे । इस मुद्दे पर पहले यह तय हुआ कि भौतिकवादी विधि से अथवा आदर्शवादी विधि से विज्ञान के सामने जितने भी दावे आते हैं अर्थात् प्रश्न चिन्ह आते हैं, उसे आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक ध्रुवों के आधार पर हल करने का प्रयास किया जाय । परन्तु इस आधार पर कोई सार्थक दृष्टि के अनुसार तर्कसंगत और प्रयोजन संगत कार्य व्यवहार, व्यवस्था परंपरा को स्थापित नहीं कर पाया । इसकी अपेक्षा शुभ चाहने वाले, दूसरी भाषा में सर्वशुभ चाहने वाले हर नर-नारी, में ऐसी चाहत पायी जा रही है । दूसरी ओर कुंठित होने वाली बात स्पष्ट हो चुकी है । कुंठित होने वालों में भी बहुत से लोग सर्वशुभ चाहते ही होंगे । शुभ चाहने वाली विधि से तर्क संगत करने जाते हैं तो सर्वशुभ ही ध्रुव होता है । अब यहाँ सर्वशुभ की चाहत को सर्व मानव