की स्वीकृति अथवा सर्वाधिक की स्वीकृति मानते हुए, आगे और सोचने, समझने, प्रमाणों को प्रस्तुत करने के क्रम में इस आलेख को आगे बढ़ाया है ।
अभी तक जो भी विज्ञान कहलाने वाली विधियाँ रही हैं, उनमें निम्नलिखित बिन्दुओं को स्पष्ट करने की परिकल्पना, प्रमाण, उन्हीं के दृष्टिकोण से रही है । विज्ञान का दृष्टिकोण संघर्ष के लिए प्रतिबद्ध है । इसके आधार पर मानवेत्तर संपूर्ण प्रकृति, मानव के लिए, मानव के उपयोग करने के लिए है । मानव में, से वही इसको उपयोग करने योग्य है, जो सबसे ज्यादा शक्तिशाली है । अर्थात् जो दूसरे को मारपीट, लूटपाट, हत्या, आतंक, जानमारी करता है । इसमें आगे यह भी तर्क हो सकता है विज्ञान ने क्या ऐसा कहीं घोषणा किया है । विज्ञान का घोषणा एक दस्तावेज के रूप में नहीं है । विज्ञान के अर्थ में जो-जो जीने गये हैं, अर्थात् विज्ञान को हवाला देते हुए अपने मन्तव्य रूपी प्रबंधों को रचना दिये हैं, उनमें इस प्रकार का उल्लेख होना पाया जाता है ।
इसमें मुख्य घोषणा अनिश्चितता अस्थिरता, बिन्दु उसमें से स्पष्ट होती है - विज्ञान अपने में स्वतंत्र है विज्ञानी नहीं । इस बात की पुष्टि वैज्ञानिक दस्तावेजों में मिलती ही है । इसमें प्रश्न यही आता है - विज्ञान की जिम्मेदारी किताब है या मानव है । इस क्रम में किताब के रूप में जो दस्तावेज है, आगे चलकर यंत्र से जो प्रमाणित होगा वह सच्चाई है, अन्तिम सत्य भले न हो, ऐसी मान्यता निष्पन्न हो चुकी है । इसका निष्कर्ष यही निकला, यंत्र ही प्रधान प्रमाण हुआ । इस विधि से जिम्मेदारी मानव पर न होकर, यंत्रों पर थोपी गयी । इसमें मानव सोच की सुविधा यही हो सकती है कि तर्क के उलझनों को पैदा न करना । तर्क का प्रयोग मानव ही करेगा । यंत्रों के साथ कोई तर्क हो ही नहीं सकता, क्योंकि यंत्र जो करता है, बार-बार करता रहता है । इस प्रकार बार-बार दोहराना ही विश्वास का आधार अथवा भरोसा का आधार माना गया । इस प्रकार विज्ञान गतिविधियों के अनुसार मानव जिम्मेदारियों से दूर है । जबकि यंत्रों को मानव बनाता है ।
निरीक्षण परीक्षण की स्थिति में हम पाते हैं कि हर मानव जिम्मेदारी का पक्षधर है । हर मानव न्याय का पक्षधर है, हर मानव व्यवस्था का पक्षधर है । इन सबके मूल में हर मानव समझदारी के पक्ष में है ।
इस बात का उल्लेख अवश्य है कि हम मानव परिभाषा के रूप में मनाकार को साकार करने वाले हैं और मनःस्वस्थता को प्रमाणित करने में प्रचलित शिक्षा-विधि से असमर्थ रहे हैं । मनःस्वस्थता ही मानव की मौलिकता है इस मौलिकता को प्रमाणित करने के क्रम में ही मानव