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मानव लक्ष्य को सार्थक बनाने के अर्थ में प्रस्तुत किया गया है। मेरा विश्वास है हर मानव ऐसे ही अध्ययन का स्वागत करेगा।

यह पुस्तिका सर्वमानव शुभ के अर्थ में सम्प्रेषित है। सर्वशुभ के अर्थ में सहअस्तित्व स्वयं निरन्तर प्रभावशील है। सहअस्तित्व के वैभव में ही सम्पूर्ण मानव का शुभ समाया हुआ है। इस तथ्य का अध्ययन कराना उद्देश्य रहा है। हम स्वयं अध्ययन किये हैं। अतएव आपके सौभाग्यशाली वर्तमान के रूप में अनुभव करने के लिए सहायक होगा, ऐसा हमारा निश्चय है।

यह प्रबंध मानव को समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी पूर्वक मानव लक्ष्य, जीवन लक्ष्य को भागीदारी रूप में प्रमाणित करने के लिए प्रेरक है। यह सार्थक हो, सर्वसुलभ हो, मानव कुल अखंड समाज, सार्वभौम व्यवस्था के रूप में सदा-सदा प्रमाणित होता रहे।

यही कामना है।

जय हो ! मंगल हो !! कल्याण हो !!!

ए. नागराज

प्रणेता : मध्यस्थ दर्शन

(सहअस्तित्ववाद)

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