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अध्याय - 4

व्यवहारवादी विचार की चर्चा

सहअस्तित्ववादी विधि से लक्ष्य और दिशा के निश्चयन के लिए संवाद शुरू किया जाना संभव हो गया। सभी मानव सुख, शांति, समृद्धि को चाहते ही रहे है। सुख समाधान का ही अनुभव है। समाधान अनुभव में सुख है। और समस्या की पीड़ा ही मानव के सभी प्रकार के संकटों का कारण है। समस्याओं का निवारण समाधान से ही होना पाया गया है। समाधान मानव में ही प्रमाणित होने वाली समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, भागीदारी है। इसके आधार पर समाधान निरंतर प्रमाणित होना स्पष्ट हुआ है। समाधान हर व्यक्ति अथवा हर नर-नारी चाहता ही है।

सहअस्तित्व रूपी दर्शन ज्ञान, जीवन ज्ञान (सहअस्तित्ववाद में जीवन ज्ञान) और मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान के आधार पर ही समाधान और उसकी निरन्तरता का होना देखा गया है। समझा गया है और जिया गया है। अभी न्याय पूर्वक जीने के लिए जिये जाने के लिए आधार पर ही व्यवहार एक मुद्दा है।

व्यवहार में प्रधान पहचान मानव को मानव से सदा-सदा समाधान चाहिए ही। व्यवहार में समाधान को प्रमाणित करना ही प्रमुख लक्ष्य है। समझदार के साथ समझदार का व्यवहार समाधानित होना स्वाभाविक है। जो समझदार नहीं है उनके साथ एक समझदार मानव का व्यवहार काफी अड़चनों को समाधानित होना देखा गया है। किन्तु समाधान का पराभव नहीं होता है।

मानव के सम्मुख समस्याएँ पीड़ा के रूप में पहुँचती है, पीड़ा के रूप में प्रभावित होती है। भ्रमवश, प्राकृतिक प्रकोपवश, जीवों के आचरणवश पीड़ा, दु:ख, रोग, भय, भ्रम होना पाया जाता है। यह सब प्रकारांतर से पीड़ा ही है, समस्या ही है। मानव मानव के साथ व्यवहार में व्यतिरेक वश, जो पीड़ाएं, समस्याएं होती है वे भ्रमवश ही होती है। भ्रमवश सभी कृत्यों के मूल में करने वाला अपने को ठीक करना ही माना रहता है। इसके परिणाम में अनेक लोगों के बीच में समस्याएं बढ़ जाती है।

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