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प्राक्कथन

व्यवहारात्मक जनवाद नाम से यह प्रबंध मानव के कर कमलो में अर्पित करते हुए परम प्रसन्‍नता का अनुभव करता हूँ। जनवाद का तात्पर्य मानव मानव से बातचीत करता ही है, संवाद करता ही है, वाद-विवाद करता ही है यह सबको पता है। यह सब यथावत रहेगा ही, तमाम प्रकार से होने वाली बातचीत का लक्ष्य दिशा को स्वीकृति पूर्वक, स्वीकृति के लिए प्रस्तुत करने के क्रम में मानव का उपकार होने की आशा समायी है। उपकार का तात्पर्य मानव लक्ष्य के अर्थ में, दिशा निश्चित होने से है। इसे लोकव्यापीकरण करने के उद्देश्य से यह पुस्तिका प्रस्तुत है।

हम मानव सदा से ही सुखी होना चाहते हैं। यह सबको कैसे उपलब्ध हो सकता है? सोचने, समझने, स्वीकार करने अथवा मान लेने के आधार पर दो प्रकार के प्रयोग हो चुके हैं। पहला भक्ति विरक्ति से सुखी होने का प्रयास और प्रयोग लाखों आदमियों से सम्पन्न हुआ। दूसरी विधि सुविधा-संग्रह से सुखी होने के लिए अथक प्रयास करोड़ों मानव अथवा सर्वाधिक मानवों ने किया। इन दोनों विधियों से सर्वमानव का सुखी होना प्रमाणित नहीं हुआ। इसी रिक्ततावश इसकी भरपाई के लिए किसी विधि की आवश्यकता बन चुकी थी। इसी घटनावश उत्पन्न समाधान के लिए सहअस्तित्ववादी नजरिया से ज्ञान, कर्माभ्यास और अनुभवमूलक विधि से अनुभवगामी पद्धति सहित प्रस्तुत हुए। मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद के अंगभूत यह व्यवहारात्मक जनवाद प्रस्तुत है।

जनवाद के मूल में आशा यही है, मानव अपने अधिकारों, दायित्वों, कर्तव्यों को समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व रूपी लक्ष्य के लिए समझे, सोचे, निश्चय करे और कार्य व्यवहार में प्रमाणित करे। इसी शुभ कामना से इस प्रबंधन को प्रस्तुत किया है।

हर मानव सुखी होना चाहता है सुखी होने के लिए समाधान आवश्यक है। समाधान के लिए समझदारी आवश्यक है। समझदारी का मूल स्वरूप सहअस्तित्व दर्शन ज्ञान, जीवन ज्ञान ही होना पाया जाता है। इसे लोकव्यापीकरण करने का आशा इस प्रस्तुति में समाया हुआ है।

हर मानव अपनी पहचान प्रस्तुत करना चाहता ही है। हर मानव की पहचान समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व रूप में ही पहचानना बनता है और पहचान कराना भी बनता है। इसी आधार पर पूरे मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद को समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व रूपी

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