है। इस तथ्य को भली प्रकार बोध कराते है। इसमें संवाद के लिए मुद्दा यही है मानव मूल्य मूलक विधि से जीना है या रूचिमूलक विधि से जीना है।
मानवीय शिक्षा क्रम में व्यवहारवादी समाजशास्त्र को अध्ययन कराया जाता हैं। जिसमें मानव मानव के साथ न्याय, समाधान, सहअस्तित्व प्रमाणपूर्वक जीने के तथ्यों को बोध कराया जाता है। जिससे सहअस्तित्व बोध, जीवन बोध सहित व्यवस्था में जीना सहज हो जाता है। इसमें संवाद का मुद्दा है सहअस्तित्व बोध सहित जीना है या केवल वस्तुओं को पहचानते हुए जीना है। मानवीय शिक्षा में आवर्तनशील अर्थव्यवस्था को अध्ययन कराया जाता है। अर्थ की आर्वतनशीलता के मुद्दे पर यह बोध कराया जाता है कि श्रम ही मूलपूंजी है। प्राकृतिक ऐश्वर्य पर श्रम नियोजन पूर्वक उपयोगिता मूल्य को स्थापित किया जाता है। उपयोगिता के आधार पर वस्तु मूल्यन होना पाया जाता है। इस विधि से हर व्यक्ति अपने परिवार में कोई न कोई चीज का उत्पादन करने वाला हो जाता है। इस ढंग से उत्पादन में हर व्यक्ति भागीदारी करने वाला हो जाता है फलस्वरूप दरिद्रता व विपन्नता से और संग्रह सुविधा के चक्कर से मुक्त होकर समाधान समृद्धिपूर्वक जीने का अमृतमय स्थिति गति बन जाती है। इसमें जन संवाद का मुद्दा यही है हम मानव परिवार में स्वायत्तता, स्वावलम्बन, समाधान, समृद्धि पूर्वक जीना है या पराधीन परवशता संग्रह सुविधा में जीना है। आवर्तनशील अर्थव्यवस्था में श्रम मूल्य का मूल्याँकन करने की सुविधा हर जागृत मानव परिवार में होने के आधार पर वस्तुओं का आदान-प्रदान श्रम मूल्य के आधार पर सम्पन्न होना सुगम हो जाता है। इससे मुद्रा राक्षस से छुटने की अथवा मुक्ति पाने की विधि प्रमाणित हो जाती है। जिसमें शोषण मुक्ति निहित रहती है। अतएव संवाद का मुद्दा यही है कि लाभोन्मादी विधि से अर्थतंत्र को प्रतीक के आधार पर निर्वाह करना है या श्रम मूल्य के आधार पर वस्तुओं के आदान-प्रदान से समृद्ध रहना है।
मानवीय शिक्षा में मानव व्यवहार दर्शन का अध्ययन कराना होता है। जिसमें अखंड समाज, सार्वभौम व्यवस्था का बोध, इसकी आवश्यकता का बोध कराया जाता है। मानव व्यवहार में प्राकृतिक नियम, बौद्धिक नियम और सामाजिक नियमों को बोध कराने की व्यवस्था रहती है। जिससे समाज की सुदृढ़ता, वैभव पूर्णता का बोध कराया जाता है। फलस्वरूप हर मानव अखंड समाज के अर्थ में अपने आचरणों को प्रस्तुत करना प्रमाणित होता है। इस प्रकार ऐसे अखंड समाज के अर्थ में सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी स्वयंस्फूर्त विधि से सम्पन्न होना होता है। यही