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उन्मुख होना स्वभाविक हुआ। फलस्वरुप, परस्परता में पहचान सहित आदान-प्रदान होना एक स्वाभाविक स्थिति हुई।

स्थितिशील प्रकृति की परस्परता में पूर्णता और अपूर्णता की स्थिति इस प्रकार स्पष्ट होती है कि स्थितिपूर्ण सत्ता में स्थितिशील प्रकृति अनन्त इकाईयों का समूह होने के कारण परस्परता एक अपरिहार्य स्थिति है। पूर्ण में गर्भित प्रत्येक इकाई पूर्णता के लिए ही क्रियाशील एवं विकासशील है।

स्थितिपूर्ण सत्ता में संपृक्त प्रकृति सत्ता में अनुभव पर्यन्त विकास और जागृति के लिए प्रवर्त्त है। विकास का तात्पर्य गठनपूर्णता, क्रियापूर्णता और आचरणपूर्णता और उसकी निरन्तरता से है। जागृति का तात्पर्य समाधान एवं प्रामाणिकता से है। इकाई में नियम और उसकी निरन्तरता इस तथ्य से स्पष्ट है कि इकाई में नियंत्रण और उसकी महिमा स्पष्ट होती हैं। यह इकाई + वातावरण = इकाई संपूर्ण रूप में है। यही उसकी निरन्तरता का द्योतक है।

“पूर्णता के अर्थ में अपूर्णता स्पष्ट है।” क्योंकि सह -अस्तित्व में परस्पर उपयोगिता पूरकता है। यह पूरकता पदार्थावस्था, प्राणावस्था, जीवावस्था एवं ज्ञानावस्था में प्रकाशित है। ज्ञानावस्था में मानव ही गण्य होता है। मानव जड़-चैतन्य का संयुक्त साकार रूप होने के कारण एवं ज्ञानावस्था के पद में होने के कारण कर्म करते समय स्वतंत्र, फल भोगते समय परतन्त्र होने की व्यवस्था उनमें ही समाहित है।

विकास और जागृति क्रम में स्वतंत्रता एक मौलिक प्रकाशन है। स्वतंत्रता के लिए इकाई इसीलिए प्रवर्त होती गयी कि वातावरण और नैसर्गिकता के योगफल से प्रवर्तन होना एक अनिवार्य स्थिति रही। इसी क्रम में पूर्णता का अभीष्ट इकाई में होना एक शाश्वत स्थिति रही है इसलिए पूर्णता क्रम में विकास स्पष्ट हैं। विकास का पहला चरण अथवा पूर्णता का पहला चरण गठनपूर्णता है। ऐसी गठनपूर्ण इकाई जीवावस्था में केवल जीने की आशा से कार्यरत रही है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि पूर्णता के अर्थ में विकासक्रम अस्तित्व में नित्य वर्तमान और स्पष्ट है। पूर्णता का दूसरा चरण क्रियापूर्णता के रूप में ज्ञानावस्था का मानव अपने त्व सहित व्यवस्था के रूप में समाधान और पूर्णता का तीसरा चरण आचरणपूर्णता अर्थात् प्रामाणिकता के रूप में सर्वाधिक उपकार प्रमाणित होना चिरकालीन अपेक्षा है। यह जड़-चैतन्य के सहअस्तित्व में ही सार्थक होना पाया गया और यह समझ में आता है।

रूपात्मक अस्तित्व :-

प्रकृति की मूल इकाई परमाणु है। क्योंकि परमाणु में ही विकास होता है। प्रत्येक परमाणु गठनपूर्वक परमाणु है । प्रत्येक गठन में एक से अधिक परमाणु अंशों का होना अनिवार्य है। परमाणु के पूर्व रूप

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