(वातावरण) से है। नैसर्गिकता (परस्परता) स्वभाव गति में होने वाली स्थिति से है। इस प्रकार जड़-चैतन्यात्मक प्रकृति का अपने आप में परस्पर नैसर्गिक और वातावरण होना एक अनुस्यूत प्रक्रिया सिद्घ हुई, यह स्वयं सहअस्तित्व का द्योतक है।
“कंपनात्मक गति और वर्तुलात्मक गति प्रत्येक इकाई में वर्तमान है।”
परमाणु में विकास का क्रम देखें तो पता चलता है कि जैसे-जैसे परमाणु विकसित होता है वैसे वैसे उसमें कंपनात्मक गति बढ़ती जाती है। इसी के साथ उसकी स्थिरता व्याख्यायित होती हैं। इसी क्रम में गठनपूर्णता हो जाती हैं। जैसे ही गठनपूर्णता होती है वैसे ही उस परमाणु में कंपनात्मक गति, वर्तुलात्मक गति की अपेक्षा अधिक हो जाती हैं। यही गति का इतिहास है जो स्वयं इस बात को स्पष्ट कर देता है कि जीवन की स्थिरता और उसकी निरतंरता को परिणाम का अमरत्व व्याख्यायित कर देता है। इस प्रकार हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते है कि स्थिरता इकाई की संपूर्णता में होते हुए उसकी निरन्तरता को बनाये रखना एक अनिवार्य स्थिति होने के कारण विकास के इतिहास में कंपनात्मक गति का महत्व अपने आप में स्पष्ट हो जाता है। इसी क्रम में जड़ प्रकृति में केवल परार्वतन होता है चैतन्य प्रकृति में परावर्तन एवं प्रत्यावर्तन दोनों होता है।
चैतन्य प्रकृति में विशेषकर ज्ञानावस्था के मानव में परावर्तन एवं प्रत्यावर्तन प्रक्रिया स्पष्ट रूप से देखने को मिलती हैं। मानव संचेतना में भी पाँचों शक्तियों की अभिव्यक्ति होने की संभावना रहते हुए, संचेतना को पहचानने एवं निर्वाह करने के क्रम में नित्य गतिशील होना पाया जाता है। यही इसका निराकरण है कि प्रत्यावर्तन पूर्वक परावर्तन में समाधान अपेक्षित तथ्य है। यह प्रत्येक व्यक्ति में प्रयोग पूर्वक, व्यवहारपूर्वक और अनुभवपूर्वक तभी सिद्घ हो जाता है, जब पहचानने एवं निर्वाह करने में सामरस्यता हो जावे। यही समाधान का स्वरुप है तथा इसकी निरन्तरता होती है।
“श्रम मानव जीवन में अविभाज्य आयाम है।” श्रम स्वयं बल के बराबर में होता है, श्रम विश्राम के अर्थ में ही है।
प्रत्येक स्थिति और अवस्था में प्रत्येक इकाई में बल संपन्नता रहता है । यह बल संपन्नता विकास के क्रम में आचरण के रूप में मिलती है। फलत: विकास और उसकी निरन्तरता होती हैं। बल संपन्नता स्वयं नित्य और स्थिर होने के कारण बल, स्थिति में, शक्ति गति में अविभाज्य होना स्वाभाविक हुआ। इसलिए प्रत्येक इकाई में रूप, गुण, स्वभाव, धर्म अविभाज्य रूप में विद्यमान रहते हैं। श्रम (बल) प्रत्येक इकाई में धर्म