बौद्घिक नियम का तात्पर्य :-
1. असंग्रह अर्थात् आवर्तनशील अर्थ व्यवस्था में भागीदारी।
2. स्नेह अर्थात् संबंधों को पहचानने में, मूल्यों को निर्वाह करने में विश्वास।
3. जीवन विद्या में पारंगत रहना, पांरगत होने में विश्वास, प्रतिभा और व्यक्तित्व में सामरस्यता सहज विश्वास। व्यवहार में सामाजिक, व्यवसाय में स्वावलंबी होने में विश्वास।
4. सरलता अर्थात् संबंधों को पहचानने में विश्वास मूल्यों को निर्वाह करने में विश्वास और मूल्यांकन करने में विश्वास।
5. अभय अर्थात् स्वयं मानवत्व सहित व्यवस्था और समग्र व्यवस्था में भागीदारी होने में विश्वास है।
सामाजिक नियम :-
1. स्वधन अर्थात् प्रतिफल, पारितोष और पुरस्कार रूप में प्राप्त धन से है।
2. स्वनारी और स्व पुरुष-विवाह पूर्वक प्राप्त दापत्य संबंध।
3. दया पूर्ण कार्य-व्यवहार अर्थात् अविकसित के विकास में सहायक होने का संपूर्ण कार्य है।
प्राकृतिक नियम चार सूत्रों से संबंद्घ है :-
1. पूरकता, उपयोगिता, नियम, नियंत्रण, संतुलन
2. उदात्तीकरण, संरक्षण
3. विकासक्रम, विकास, जागृतिक्रम, जागृति
4. त्व सहित व्यवस्था और समग्र व्यवस्था में भागीदारी
प्राकृतिक नियम :- अपने स्वरुप में, प्राकृतिक संपदा के साथ, मानव का अपने को नैसर्गिक संबंध के रूप में पहचान और पहचानने में विश्वास है, क्योंकि मानव के लिए मानवेत्तर प्रकृति नैसर्गिक है और मानवेत्तर प्रकृति के लिए मानव नैसर्गिक है। इसमें पूरकता विधि को निर्वाह करना प्राकृतिक नियम है।
1. संतुलन :- प्राकृतिक संपदा को ऋतु संतुलन के अर्थ में संरक्षित करना व करने में विश्वास; असंतुलन की स्थिति में, संतुलित बनाने में विश्वास। प्राकृतिक संपदा को उसकी अभिवृद्घि के अनुपात में संतुलन को ध्यान में रखते हुए उपयोग, सदुपयोग करने में विश्वास।
2. संरक्षण :- धरती, जलवायु, वन, खनिज को संरक्षित करने में विश्वास।
3. मूल्यांकन :- प्राकृतिक ऐश्वर्य को उपयोगिता के आधार पर मूल्यांकन करने में विश्वास।