उक्त तीनों नियमों (बौद्घिक, सामाजिक, प्राकृतिक नियम) में इंगित व्यावहारिक प्रमाणों के आधार पर मानव, मानवीय समाज रचना में अर्थात् अखण्ड समाज रचना कार्य में सफल होता है।
इस धरती पर भौतिक क्रियाकलाप, रासायनिक क्रियाकलापों के लिए; रासायनिक क्रियाकलाप, भौतिक क्रियाकलापों के लिए पूरक है, यह स्पष्ट है। उदात्तीकरण सिद्घांत का प्रमाण वर्तमान में ही देखने को मिलता है कि विभिन्न दो प्रजाति के दो भौतिक ध्रुव जैसे एक जलने वाला - एक जलाने वाला यौगिक विधि से पानी में इस धरती पर अम्ल में, क्षार में एक से अधिक भौतिक तत्व मिलकर तरंगयात होते हैं। इनका संगीत विधि से वर्तमान रहना देखने को मिलता हैं। यही उदात्तीकरण का प्रमाण हैं। ऐसा रासायनिक वैभव क्रम में अनेक प्रकार के रस वैभव ठोस, तरल और विरल रूप में भी फैला दिखता है। जैसे, पानी ठोस रूप में बर्फ, तरल रूप में पानी दिखता ही है और वाष्प रूप में अर्थात् विरल रूप में भाप रहता है। इसी प्रकार से संपूर्ण रस और मिश्रित रस होना भी पाया जाता है। अस्तित्व में यह उदात्तीक्रम अपने आप में आनुपातिक होता हैं। इसका तात्पर्य यह है कि, इस धरती पर सभी रसायन द्रव्य का होना, प्रत्येक प्रजाति का रसायन द्रव्य कितने अनुपात में तैयार होना है, इस पूरक विधि क्रम में स्पष्ट हुआ। पूरक विधि की मूल वस्तु भौतिक वस्तु ही हैं। भौतिक वस्तुओं का मूल रूप परमाणु ही है।
अस्तित्व में संपूर्ण रचनाएँ चाहे कोई धरती संपूर्ण रचनाओं की रचना से समृद्घ हो या असमृद्घ हों, यही देखने को मिलता है कि भौतिक-रासायनिक रचना क्रम में ही धरती अपने-अपने वातावरण सहित व्यक्त होते दिखाई पड़ती हैं। इन सबमें पूरकता विधि से सभी प्रजाति के परमाणु तैयार हो जाते हैं। भौतिक रचना की मूल समृद्घि विभिन्न प्रजाति के परमाणु हैं। इनके तैयार हो जाने से परमाणुओं की प्रजातियाँ परमाणु में निहित संख्यात्मक अंशों के आधार पर स्पष्ट होती है, और वर्तमान में प्रमाणित है। जैसे- इस धरती में जितने भी प्रकार के परमाणु परंपरा के रूप में स्थापित हो चुके है, वे सब परस्परता में नैसिर्गक है। ऐसा होने के फलस्वरुप विभिन्न प्रजाति के परमाणु अणु की स्थिति में, अणु रचित पिण्डों की स्थिति में भी परस्पर प्रभावित करने व रहने की प्रक्रिया अनुस्यूत रूप में निष्पन्न होते ही रहता है।
विभिन्न परमाणु और अणुओं का परस्परता में प्रतिबिम्बित रहना तथा प्रभावों से प्रभावित होना प्रमाणित है। ये सभी प्रकार के प्रभाव उष्मा और गति के रूप में प्रमाणित हो जाते है, क्योंकि यह धरती स्वयं उष्मा और गति के रूप में ही स्पष्ट है। इस धरती ने अपने में जो वातावरण बनाया है अर्थात् इस धरती की सहज भौतिक-रासायनिक वस्तुएँ, विरल रूप में भी इसी धरती के सभी ओर फैली दिखाई पड़ती है। इस फैले हुए व्यवस्था क्रम से यह तथ्य उजागर होता है कि ब्रह्माण्डीय अथवा अनन्त सौरव्यूह की उष्मा, प्रसारण किरण-विकिरण सहज संयोग में, यह धरती भी प्रमाणित है। इस धरती के वातावरण ने अपने में सक्षमता