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को स्थापित किया है। इस धरती के वातावरण से प्रवेशित होकर, इस धरती तक अर्थात् ठोस भाग तक पहुँचने तक उष्मा किरण-विकिरण को यह धरती उपयोग विधि स्वरुप दे देती है। जैसे- यह धरती उष्मा को क्रम से किरणों और रश्मि क्रम में, पूरकता विधि से, अपने में पच जाने की स्थिति को बनाये रखती है, ताकि इस धरती का स्वास्थ्य सदा बना रह सके। इस प्रकार धरती का “संरक्षण वलय” ही इस धरती का वातावरण है। यही इस धरती का प्रभाव क्षेत्र भी है। प्रत्येक एक अपने वातावरण सहित संपूर्ण है। संपूर्णता का तात्पर्य, पूर्णता के अर्थ में भागीदारी है। अस्तित्व में परमाणु में गठनपूर्णता, क्रियापूर्णता और आचरणपूर्णता ही संपूर्णता का प्रयोजन है। यही मूल सिद्घांत पूरकता को निरंतर प्रमाणित करता है। ऐसा पूरकता क्रम प्रवर्तन सहअस्तित्व सहज प्रभाव विधि से प्रकाशित है।

सहअस्तित्व संपूर्ण वस्तुओं, अनंत वस्तुओं की परस्परता में संपन्न होने वाले क्रियाकलापों का वैभव है इसका मूल रूप सत्ता में संपृक्त भौतिक-रासायनिक और चैतन्य रूपी जीवन प्रकृति की संयुक्त अभिव्यक्ति हैं। इन अभिव्यक्तियों का संयुक्त रूप, व्यापक सत्ता में अनंत प्रकृति का वर्तमान होना रहना है, जो स्पष्ट होता है। इसी आधार पर अर्थात् वर्तमान के आधार पर सहअस्तित्व प्रमाणित है। सहअस्तित्व वश ही अथवा सहअस्तित्व ही “पूरकता”, “उदात्तीकरण”, “त्व सहित व्यवस्था”, के रूप में वर्तमान है। इसको जानना, मानना, पहचानना, निर्वाह करना मानव में, से, के लिए समाधान है।

पूरकता का स्वरुप कई प्रकार से देखा जा सकता है। परमाणुओं में विविध संख्यात्मक स्थिति है ही, ऐसी विविधता के मूल में दो अंशों के परमाणुओं का अनुपात और सैकड़ों अंशों से संपन्न परमाणुओं का अनुपात स्वयं इस धरती पर प्रमाणित हैं। सहअस्तित्व सहज फलन ही अनुपातीयता का प्रमाण हैं। इस प्रकार परमाणु प्रजाति उन-उन का अनुपात सहज रूप में उसकी परमावधि का प्रमाण ही है- उदात्तीकरण प्रक्रिया। जब किसी धरती में सभी प्रकार के परमाणु तैयार हो जाते है अथवा किसी एक धरती में कितने प्रकार के परमाणुओं की आवश्यकता रहती है, इसका निर्धारण भूखे परमाणु व अजीर्ण की कतार में स्प्ष्ट हो जाता है। जब तक भूखे रहते है, तब तक अंशों की संख्या में घट-बढ़ होती रहती है और अजीर्ण की परमावधि तक परमाणु अपनी भूख मिटाने के क्रम में कार्य कर देता है। अजीर्ण के आरंभ और परमावधि के बीच अंशों का क्षरण होना पाया जाता है। क्षरण होते रहता है। इसी प्रक्रिया में और नई संख्यात्मक (नई का तात्पर्य जो बने रहते है, उससे भिन्न संख्यात्मक) परमाणु के गठन होने की एक संभावना बनी रहती है, और भूखे परमाणु में क्षरणित परमाणु अंशों के समा जाने की एक संभावना बनी रहती है। इसी क्रम में उदात्तीकरण बिंदु पर्यन्त आवश्यकीय परमाणुओं की प्रजातियाँ स्थापित हो जाती हैं। किसी भी धरती में भौतिक वस्तुओं के समृद्घ होने के उपरान्त ही भौतिक वस्तुएँ रासायनिक क्रियाकलाप में तत्पर

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