- 4) स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर आवश्यकता होने पर स्त्री पुरुषों के लिए अलग शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था होगी।
- 5) अनावश्यक, अव्यवहारिक, असामाजिक आदतों को छुड़ाने के लिए अलग से शिक्षा व्यवस्था होगी जो कि “स्वास्थ्य संयम समिति" के साथ मिलकर कार्य करेगी।
- 6) व्यवसाय शिक्षा के लिए “शिक्षा संस्कार समिति” “उत्पादन सलाहकार समिति” एवं “वस्तु विनिमय कोष समिति” के साथ मिलकर कार्य करेगी व सम्मिलित रूप से यह तय करेगी कि ग्राम की वर्तमान व भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर, किस-किस व्यक्ति को, किस-किस उत्पादन की शिक्षा दी जाए। “विनिमय कोष समिति” ऐसे उपायों की जानकारी देगी, जिनकी गाँव के बाहर अच्छी माँग है व जिसे वह अच्छी कीमत पर विनिमय कर सकती है।
- 7) कृषि, पशुपालन, ग्राम शिल्प, कुटीर उद्योग, ग्रामोद्योग व सेवा में जो पहले से पारंगत हैं , उनके द्वारा ही अन्य ग्रामवासियों को पारंगत करने की व्यवस्था की जायेगी।
- 8) यदि उपरोक्त शिक्षा में कभी उन्नत तकनीकी विज्ञान व प्रौद्योगिकी को समावेश करने की आवश्यकता होगी तो उसको समाविष्ट करने की व्यवस्था रहेगी।
- 9) व्यवहार शिक्षा के लिए “शिक्षा संस्कार समिति” “स्वास्थ्य संयम समिति” के साथ मिलकर कार्य करेगी।
- 10) मानवीयता पूर्ण व्यवहार (आचरण) व जीने की कला सिखाना व अर्थ की सुरक्षा तथा सदुपयोगिता के प्रति जागृति उत्पन्न करना ही, व्यवहार शिक्षा का मुख्य कार्य है।
रुचि मूलक आवश्यकताओं पर आधारित उत्पादन के स्थान पर मूल्य व लक्ष्य मूलक अर्थात उपयोगिता व प्रयोजनीयता मूलक उत्पादन करने की शिक्षा प्रदान करना। जिससे प्रत्येक नर-नारी में आवश्यकता से अधिक उत्पादन समृद्धि (असंग्रह), अभयता (वर्तमान में विश्वास), सरलता, दया, स्नेह, स्वधन, स्वनारी/स्वपुरुष, बौद्धिक समाधान, प्राकृतिक संपत्ति का उसके उत्पादन के अनुपात में सदुपयोग व उसके उत्पादन में सहायक सिद्ध हो ऐसी मानसिकता का विकास करना, व्यवहार शिक्षा में समाविष्ट होगा। इसके लिए शिक्षा के निम्न अवयवों का अध्ययन आवश्यक होगा:-
- 1) अस्तित्व, विकास, जीवन, जीवन जागृति व रासायनिक-भौतिक रचना-विरचना के प्रति निर्भ्रम होना (जानना एवं मानना) रहेगा।