यह व्यवहार मानवीयता और सामाजिकता व व्यवस्था सहज गति के लिए सहायक नहीं है। न्याय सुरक्षा समिति, न्याय सुलभता और सुरक्षा कार्य में निष्ठान्वित तथा प्रतिज्ञाबद्ध रहेगी।
न्याय सुरक्षा समिति मानवीय आचार संहिता के अनुसार न्याय प्रदान करेगी। मानवीय आचार संहिता के अनुसार न्याय व्यवस्था के चार प्रधान आयाम है :- (1) आचरण में न्याय (2) व्यवहार में न्याय (3) उत्पादन में न्याय (4) विनिमय में न्याय।
1. आचरण में न्याय :-
स्वधन, स्वनारी/स्वपुरूष और दया पूर्ण कार्य का वर्तमान और उसका मूल्यांकन आचरण में न्याय का स्वरूप है। स्वधन का तात्पर्य श्रम नियोजन का प्रतिफल, कला तकनीकी, विद्वत्ता विशेष प्रदर्शन, प्रकाशन किए जाने के फलस्वरूप प्राप्त पुरस्कार और उत्सवों के आधार पर किया गया आदान-प्रदान के रूप में प्राप्त पारितोष रूप में प्राप्त धन या वस्तुएँ से हैं।
स्वनारी, स्वपुरूष :-
विवाह पूर्वक स्थापित दाम्पत्य संबंध जिसका पंजीयन ग्राम मोहल्ला सभा में होगा।
दया पूर्ण कार्य :-
- 1) मानव चेतना पूर्वक मूल्यों की पहचान और उसका निर्वाह।
- 2) संबंधों की पहचान और निर्वाह क्रम में तन, मन, धन रूपी अर्थ का अर्पण समर्पण।
- 3) नि:सहाय, कष्ट ग्रस्त, रोग ग्रस्त और प्राकृतिक प्रकोपों से प्रताडि़त व्यक्तियों को सहायता प्रदान करना।
- 4) प्राकृतिक, सामाजिक और बौद्धिक नियमों का पालन आचरण पूर्वक प्रमाणित करते हुए मानवीय परंपरा के लिए प्रेरक होना।
- 5) जो जैसा जी रहा है, कार्य कर रहा है उसका मूल्यांकन करना। जहाँ-जहाँ सहायता की आवश्यकता है वहाँ सहायता प्रदान करना।
- 6) पात्रता हो उसके अनुरूप वस्तु न हो, उसके लिए वस्तु को उपलब्ध कराना ही दया है।
2. व्यवहार में न्याय (मानवीय व्यवहार) :-
मानवीय व्यवहार मानव तथा नैसर्गिक संबंधों व उनमें निहित मूल्यों की पहचान और उसका निर्वाह करना है। मानव परंपरा में मानव संबंध प्रधानत: सात प्रकार से गण्य है :-
- 1) माता - पिता
- 2) पुत्र - पुत्री