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कालांतर में “ग्राम शिक्षा संस्कार समिति” क्रम से ग्राम समूह सभा, क्षेत्र सभा, मंडल सभा, मंडल समूह सभा, मुख्य राज्य सभा, प्रधान राज्य सभा व विश्व राज्य सभा की “शिक्षा संस्कार समिति” से जुड़ी रहेगी। अत: विश्व में कहीं भी स्थित कोई जानकारी “ग्राम शिक्षा संस्कार समिति” को उपरोक्त सात स्रोतों से तुरंत उपलब्ध हो सकेगी। पूरी जानकारी का आदान-प्रदान कम्प्यूटर व्यवस्था द्वारा आपस में जुड़ा रहेगा। इसी प्रकार अन्य चारों समितियाँ भी ऊपर तक आपस में जुड़ी रहेगी।

8.9 (2) उत्पादन कार्य समिति

ग्राम में हर तरह का उत्पादन व सेवा कार्य “ग्राम उत्पादन सेवा कार्य सलाह समिति” द्वारा संचालित किया जायेगा। यह समिति अन्य समितियों के साथ मिलकर कार्य करेगी। वह समिति गांव के प्रत्येक स्वस्थ स्त्री पुरुष को, किसी न किसी उत्पादन कार्य में लगावेगी। स्थानीय सर्वेक्षण के आधार पर जिसका विस्तृत विवरण सर्वेक्षण प्रक्रिया के अंतर्गत दिया जा चुका है, उत्पादन समिति प्रत्येक व्यक्ति को उसकी वर्तमान अर्हता के आधार पर कोई उत्पादन कार्य करने की सलाह देगी व उनके लिए उस व्यक्ति को आवश्यक प्रशिक्षण व अन्य सुविधाएँ उपलब्ध कराएगी। जो भी उत्पादन कार्य होगा वह मानव की सामान्य आकाँक्षा (आवास, आहार, अलंकार) व महत्वाकाँक्षा (दूरगमन, दूरदर्शन, दूरश्रवण) संबंधी आवश्यकताओं पर आधारित होगा।

“उत्पादन कार्य सलाह समिति” ग्राम सभा के सहयोग से गाँव की सामान्य सुविधाओं को स्थापित करने में सहयोग देगी व आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराएगी। पर्यावरण सुरक्षा व पर्यावरण के साथ संतुलन एकसूत्रता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी। प्रदूषण से मुक्त उत्पादन कार्य प्रणाली को अपनाया जायेगा।

8.9 (3) न्याय सुरक्षा समिति

ग्राम न्याय सुरक्षा समिति :- ग्राम सभा के द्वारा मनोनीत की जायेगी। यह समिति गाँव की सम्पूर्ण व्यवहार कार्य संबंधी विवादों को हल करने के लिए स्वतंत्र होगी व बाह्य हस्तक्षेप से मुक्त रहेगी। न्याय प्रक्रिया का स्वरूप सुधार-प्रणाली पर आधारित रहेगा ताकि ग्राम-न्यायालय में सम्पूर्ण प्रक्रिया मानवीय संचेतनावादी व्यवहार पद्धति पर आधारित होगी। चूंकि प्रत्येक मानव को, मानवीयता पूर्ण पद्धति व प्रणाली व नीति पूर्वक जीने का अधिकार समान है। इसके अनुसार गाँव में मानवीयता पूर्ण आचरण पद्धति, मानवीयता पूर्ण व्यवहार प्रणाली व अर्थ (तन, मन, धन) की सुरक्षात्मक व सदुपयोगात्मक नीति रहेगी। जो भी व्यक्ति इस व्यवस्था की निरंतरता बनाए रखने में असमर्थ रहेगा, वह सुधरने के लिए प्रवृत्त होगा। मानव अज्ञान, अत्याशा और अभाव वश ही गलती, अपराध तथा भय-प्रलोभनवश तन, मन, धन रूपी अर्थ का अपव्यय करता है।

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