1.0×

उपयोगिता का स्वरूप निम्न है :-

  1. 1) प्राकृतिक सम्पदा (खनिज, वनस्पति तथा पशु-पक्षी) का उनके संतुलन सहज अनुपात में उपयोग।
  2. 2) प्राकृतिक सम्पदा में अवरोध न डालना।
  3. 3) प्राकृतिक सम्पदा समृद्ध होने-रहने में सहायक बनना।

(नैसर्गिक पवित्रता संतुलन को समृद्ध बनाए रखे बिना मानव स्वयं समृद्ध नहीं हो सकता।)

3. उत्पादन में न्याय :-

  1. 1) प्रत्येक व्यक्ति परिवार सहज आवश्यकता से अधिक उत्पादन करना।
  2. 2) प्रत्येक व्यक्ति में आवश्यकता से अधिक उत्पादन करने योग्य कुशलता, निपुणता व पाण्डित्य को प्रमाणित करना, जिसका दायित्व शिक्षा संस्कार समिति को होगा।
  3. 3) उत्पादन के लिए व्यक्ति में निहित क्षमता योग्यता के अनुरूप उसे प्रवृत्त करना जिसका दायित्व “उत्पादन कार्य सलाह समिति” का होगा।
  4. 4) उत्पादन के लिए आवश्यकीय साधनों को सुलभ करना इसका दायित्व “विनिमय कोष समिति” का होगा।
  5. 5) उत्पादन कार्य सामान्य आकाँक्षा (आहार, आवास, अलंकार) महत्वाकाँक्षा (दूरदर्शन, दूरगमन, दूरश्रवण) संबंधी वस्तुओं के रूप में प्रमाणित होना।
  6. 6) “उत्पादन कार्य सलाह समिति” व “विनिमय कोष समिति” संयुक्त रूप में सम्पूर्ण ग्राम की उत्पादन संबंधी तादाद, गुणवत्ता व श्रम मूल्यों का निर्धारण करेगी।

4. विनिमय में न्याय :-

  1. 1) उत्पादित वस्तु के विनिमय कार्य सुलभ करना।
  2. 2) विनिमय प्रक्रिया प्रथम चरण में, श्रम मूल्य को वर्तमान में प्रचलित प्रतीक मुद्रा के आधार पर मूल्यांकित करने की व्यवस्था रहेगी। जैसे स्थानीय उत्पादन को, जहाँ उसको बेचना है, उस मंडी की दरों पर आधारित उसका क्रय मूल्य निर्धारित होगा। ग्राम की आवश्यकता के लिए अन्य बाजारों से, वस्तुओं का विक्रय मूल्य, उन बाजारों के क्रय मूल्य पर आधारित होगा।
  3. 3) द्वितीय चरण में श्रम के आधार पर प्रतीक मुद्रा को मूल्यांकन करने की व्यवस्था होगी व उसी के आधार पर क्रय विक्रय कार्य सम्पन्न होगा।
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