1. 6.16 सर्व मानव सुखी होने के अर्थ में ही स्वतंत्र अन्यथा परतंत्र कार्य-व्यवहार करता है।
  2. 6.17 हर मानव में, से, के लिए भी आशा, विचार, इच्छायें स्वयं स्फूर्त होता हुआ स्पष्ट है।
  3. 6.18 हर जागृत मानव अनुभव मूलक प्रमाण बोध, संकल्प, साक्षात्कार, चित्रण, तुलन, विश्लेषण और सहअस्तित्व रूप सत्य सहज आस्वादन पूर्वक चयन क्रिया सम्पन्न होता है।
  4. 6.19 हर मानव जागृति पूर्वक मानव लक्ष्य, जीवन लक्ष्य सफलता में, से, के लिए शुभ कार्य-व्यवहार पूर्वक उपकार करता है।
  5. 6.20 शुभ सर्व मानव में स्वीकृत है।
  6. 6.21 शुभ सहज परंपरा ही समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व है।
  7. 6.22 सर्वशुभ कार्य, व्यवहार, व्यवस्था, आचरण, विचार, ज्ञान, विवेक, विज्ञान ही मानव कुल में, से, के लिए नित्य उत्सव है।
  8. 6.23 जीवन लक्ष्य व मानव लक्ष्य सहज प्रमाण परंपरा ही सर्व शुभ है।
  9. 6.24 सर्वशुभ परंपरा में भागीदारी से ही सर्वशुभ सुलभ रहता है।
  10. 6.25 सर्व मानव को मानवीयता के आधार पर पहचानना ही अखण्ड समाज के रूप में सर्वशुभ के लिए प्रमाण है।
  11. 6.26 सर्व मानव मानवत्व सहित परिवार में प्रमाणित होना और वैभव सहज स्वराज्य मूलक परिवार व्यवस्था में भागीदारी करने के रूप में स्पष्ट होता है।
  12. 6.27 जागृत मानव परंपरा में हर नर-नारी स्वानुशासनपूर्वक अखण्ड सामाजिकता के अर्थ में अभिव्यक्त रहते हैं और मानवत्व सहित परिवार में व्यवस्था, परिवारमूलक स्वराज्य व्यवस्था में भागीदारी के रूप में प्रमाणित होता है।
  13. 6.28 जागृत परंपरा में हर नर-नारी स्वयं में समग्र अस्तित्व में, परस्पर मानव संबंधों में और मानवेत्तर प्रकृति के साथ व्यवस्था सूत्र के आधार पर विश्वास ही स्वयं में विश्वास है।
  14. 6.29 जागृत परंपरा में हर नर-नारी नियम, नियंत्रण, संतुलनपूर्वक न्याय, धर्म, सत्याभिव्यक्ति सम्प्रेषणा प्रकाशन में सार्थक एवं समान है।
  15. 6.30 समस्त मानव जागृतिपूर्वक ही व्यवस्था में, से, के लिए प्रमाणित होता है।
  16. 6.31 मानव परंपरा में संबंधों के आधार पर न्याय प्रमाणित होता है।
  17. 6.32 सर्वशुभ में ही स्वशुभ समाया है। यही अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन सहज ध्रुव बिन्दु है।
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