1. 5.41 अविनाशिता (नित्यता) सहअस्तित्व रूप में सदा वर्तमान ही है। सहअस्तित्व में ही विकास क्रम, विकास, जागृति क्रम, जागृति पद अथवा पदों के रूप में स्पष्ट है।
  2. 5.42 खनिज, वनस्पति व जीव संसार ऋतु संतुलन के अर्थ में प्राकृतिक नियम और इनकी परस्परता में पूरक, उपयोगिता नियम वर्तमान है इन तीनों स्वरूपों में विद्यमान सभी इकाइयाँ त्व सहित व्यवस्था व समग्र व्यवस्था में भागीदारी नियम सहज वर्तमान यही पूरकता विधि है।
  3. 5.43 पूरक विधि से ही उपयोगिता, सदुपयोगिता, प्रयोजनीयता जागृत मानव परंपरा में, से, के लिए नित्य वैभव रुप में वर्तमान है।
  4. 5.44 हर मानव में, से, के लिए जागृति जीवन लक्ष्य सहज प्रमाण व्यवस्था है। मानवत्व अनुभव अनुभवमूलक विधिपूर्वक सफल हैं।
  5. 5.45 व्यापक वस्तु पारदर्शी, पारगामी, साम्य ऊर्जा सहज सत्ता, स्थिति पूर्ण सत्ता में सम्पृक्त प्रकृति स्थितिशील है यही भौतिक-रासायनिक और जीवन इकाईयों में बलसम्पन्न क्रियाशील, परिणामशील, विकास क्रमशील, विकास, जागृतिशील, जागृति व जागृतिपूर्ण अवस्था व पदों में नित्य वर्तमान होना सहज है।
  6. 5.46 भौतिक, रासायनिक व जीवन क्रिया पद भेद से अर्थ भेद होना प्रमाणित है।
  7. 5.47 क्रियाशीलता ही आचरण के रूप में स्पष्ट है।
  8. 5.48 श्रम, गति और परिणाम और परिणाम का अमरत्व, श्रम का विश्राम, गति का गन्तव्य के रूप में सम्पूर्ण क्रियायें स्पष्ट हैं।
  9. 5.49 सम्पूर्ण क्रियायें सहअस्तित्व में, से, के लिए ही है।
  10. 5.50 अवस्था व पद भेद से आचरण भेद है। जो यथास्थिति सहज वर्तमान है।
  11. 5.51 अस्तित्व में प्राणपद, भ्रान्तिपद, देवपद और दिव्यपद प्रसिद्ध है।
  12. 5.52 प्राणपद में पदार्थावस्था से प्राणावस्था विकास व प्राणावस्था से पदार्थावस्था ह्रास क्रम में पूरकता-उपयोगिता विधि से वैभव है।
  13. 5.53 विकास व ह्रास क्रम में प्राणपद चक्र विधि से वर्तमान है। यही भौतिक-रासायनिक क्रिया है।
  14. 5.54 जीवावस्था में जीवन शरीर रचना के अनुसार वंशानुषंगीय विधि से कार्यरत रहता है।
  15. 5.55 क्रिया-प्रक्रिया-आचरण से ही परस्परता विधि में, से, के लिए प्रत्येक का मूल्यांकन होता है।
Page 174 of 212