6.1 मानव परंपरा में हर नर-नारी पीढ़ी दर पीढ़ी अभिव्यक्ति, सम्प्रेषणा, प्रकाशन होने के आधार पर, जानने-मानने के आधार पर अपने को परस्परता में पहचानता, निर्वाह करता है।
6.2 दुर्घटनाओं के आधार पर आधारित सूचनायें सूची बनकर रह जाती है, न कि जीने के रूप में परंपरा।
6.3 मानव ही जागृति सहज शिक्षा-संस्कार पूर्वक मानवीय संस्कृति-सभ्यता, विधि-व्यवस्था का धारक-वाहक है। यही मानवीयता पूर्ण परंपरा है।
6.4 सहअस्तित्ववादी समझ ही जागृत परंपरा है।
6.5 जागृति सम्पन्न मानव परंपरा में निर्वाह सहज मूल प्रवृत्तियिाँ साक्ष्य है।
6.6 प्रत्येक जागृत मानव (नर-नारी) समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, भागीदारी का धारक-वाहक है अथवा होना चाहता है। यही मानव परंपरा सहज अक्षुण्णता है।
6.7 समझदारी, ईमानदारी रूपी सहज सार्थकता ही जागृत मानव परंपरा है।
6.8 मानवत्व सहित व्यवस्था समग्र व्यवस्था में भागीदारी सहज स्वीकृति, अभिव्यक्ति की सम्प्रेषणा प्रकाशन प्रमाण है। यही जागृत मानव परंपरा है।
6.9 सर्व मानव जागृति पूर्वक स्वीकृति सहित किया गया कार्य-व्यवहार व्यवस्था सहज रुप में प्रमाणित होना ही सत्य स्वीकृत सम्पन्न मानव परंपरा है।
6.10 जागृत परंपरा सर्व मानव में अखण्ड समाज के अर्थ में सार्थक है।
6.11 सर्व मानव का सम्पूर्ण कार्य-व्यवहार, उत्पादन-विनिमय, स्वास्थ्य-संयम, न्याय-सुरक्षा, शिक्षा-संस्कार सहित अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था में प्रमाण प्रस्तुत करना ही जागृत परंपरा है।
6.12 यथास्थितियों के आधार पर ही विकास व जागृति सहज वैभव मानव परंपरा में प्रमाणित होता है।
6.13 मानव परंपरा ही जागृति सहज वैभव का धारक-वाहक है क्योंकि मानव ज्ञानावस्था में नियति विहित इकाई है।
6.14 ज्ञानावस्था में हर नर-नारी सोच-विचार समझ के आधार पर अपनी पहचान बनाते हुए, जानते मानते हुए देखने को मिलता है।
6.15 हर नर-नारी स्व निर्णय के अनुसार आजीविका पूर्वक कार्य-व्यवहार करने लगता है तब से अपने को समझदार मानना होता है।