1. 6.33 सर्व मानव में शुभ ही मानव परंपरा सहज वैभव है।
  2. 6.34 सर्वशुभ का स्रोत नित्य समीचीनता सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व दर्शन सहज समझ, लक्ष्य, दिशा, निर्णय क्रियाकलाप ही चिंतन का स्वरूप है। यह साक्षात्कार है।
  3. 6.35 मानव परंपरा में ही जागृति सहज परंपरा वैभव है।
  4. 6.36 सर्व मानव में, से, के लिए जागृति सहज समझ, विचार, व्यवहार कार्य का अपनाना आवश्यक है।
  5. 6.37 जागृत मानव परंपरा में अनुसंधान और शोधपूर्वक जागृति का वैभव परंपरा सहज रुप में सार्थक है।
  6. 6.38 दृष्टा पद व जागृति मानव परंपरा में ही प्रमाणित होता है।
  7. 6.39 हर नर-नारी अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था में सर्वस्वीकृत विधि से सुख सुन्दर समाधान सहज वैभव सम्पन्न होना प्रमाणित है।
  8. 6.40 जागृति व जागृति पूर्णता में, से, के लिए मानव परंपरा संतुलित और सुरक्षित है।
  9. 6.41 जागृति पूर्वक मानवीयतापूर्ण परंपरा मानव कुल में ही जागृति सहज वैभव है। यह मानव चेतना, देव चेतना व दिव्य चेतना सहज वैभव है।
  10. 6.42 जागृत परंपरा निरंतरता के अर्थ में ही वैभव सम्पन्न है।
  11. 6.43 मानव परंपरा सहज घटना, पदार्थ, प्राण, जीवावस्था के समृद्ध होने के उपरान्त ही ज्ञानावस्था का उदय है।
  12. 6.44 सर्वशुभ के अर्थ में ही शुभ कामनायें विचार व्यवहारपूर्वक प्रमाण है।
  13. 6.45 सर्व मानव ज्ञानावस्था सहज इकाई है।
  14. 6.46 मानव ही सम्पूर्ण अध्ययनपूर्वक ज्ञान-विवेक-विज्ञान सम्पन्न होना ही मानवाधिकार स्वत्व स्वतंत्रता अधिकार पूर्वक सार्थक होना पाया है। कार्य-व्यवहार-व्यवस्था व व्यवस्था में भागीदारी सम्पन्न होना जागृत मानव परंपरा में वैभव है।
  15. 6.47 मानव परंपरा में सौंदर्य व्यक्तित्व प्रधान रुप में जागृति है।
  16. 6.48 हर नर-नारी में, से, के लिए समान अधिकार समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, भागीदारी के रूप में है।
  17. 6.49 ज्ञान-विवेक-विज्ञान सम्मत काल, क्रिया, निर्णयवादी कार्य, विचार, मानसिकता सहित समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व सहज प्रमाण ही सर्वशुभ और परंपरा है, अभिव्यक्ति, सम्प्रेषणा,
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