प्रकाशन मानव में, से, के लिए जीता-जागता व्यवहार और व्यवस्था में भागीदारी के रूप में स्पष्ट होता है।
- 6.50 शुभकामनायें जागृतिपूर्वक मानव लक्ष्य व आचरण के रूप में प्रमाणित होता है।
- 6.51 मानव परंपरा में ही समस्त प्रकार के प्रवर्तनों के मूल में सुखी होने की आकांक्षा समाया रहता है।
- 6.52 शुभ की चाह मानव जाति में सहज प्रकाशन है। सर्वशुभ ज्ञान सहज योजना पर्यन्त शोध अनुसंधान होना स्वाभाविक है।
- 6.53 अधिकार विधि नैतिकता सहज प्रभाव सहित कार्यक्रम ही व्यवस्था है।
- 6.54 हर शुभ प्रेरणा मानव में, से, के लिए कार्य स्वयं स्फूर्त प्रवृत रूप में स्पष्ट है।
12.7 ज्ञान, समझदारी, अध्ययन, संज्ञानीयता
ज्ञान : सहअस्तित्व रूपी दर्शन, जीवन, आचरण सहज संयुक्त ज्ञान प्रमाण
समझदारी : ज्ञान, विवेक, विज्ञान सहित प्रमाण
अध्ययन : अधिष्ठान की साक्षी में अनुभव प्रमाण सम्पन्न होने के अर्थ में किया गया क्रियाकलाप
संज्ञानीयता : ज्ञान-विवेक-विज्ञान सम्पन्नता सहज प्रमाण
- 7.1 मानव परंपरा में विकास क्रम, विकास और जागृति क्रम, जागृति सहज समझ ज्ञान सार्थक होता है।
- 7.2 मानवीयतापूर्ण आचरण सहज समझ ज्ञान है।
- 7.3 सहअस्तित्व में, से, के लिए जानना, मानना ही ज्ञान और पहचानना, निर्वाह करना प्रमाण उसका सर्व सुलभ होना ही सर्वशुभ ज्ञान है।
- 7.4 मानव में जानना, मानना ही पहचान व निर्वाह करने का आधार है।
- 7.5 ज्ञान-विवेक-विज्ञान समस्त निर्णयवादी कार्य-विचार, मानसिकता सहित अभिव्यक्ति, सम्प्रेषणा, प्रकाशन मानव में, से, के लिए जीता जागता जागृति सहज व्यवहार और व्यवस्था में भागीदारी के रूप में स्पष्ट होता है।
- 7.6 अभिव्यक्ति संप्रेषणाापूर्वक समझदारी, ईमानदारी, भागीदारी स्पष्ट होता है और सम्प्रेषणा प्रकाशनपूर्वक ही हर मानव मानवत्व सहित व्यवस्था व समग्र व्यवस्था में भागीदारी सहज रुप में प्रमाणित है।