1. 7.7 सत्ता में सम्पृक्त जड़-चैतन्य सहअस्तित्व है। अस्तु, सहअस्तित्व दर्शन ज्ञान, जीवन ज्ञान और मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान ही सम्पूर्ण ज्ञान है। ज्ञान के आधार पर अथवा ज्ञान सम्मत विधि से मानव लक्ष्य को पहचानना विवेक है। मानव लक्ष्य स्वयं में समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व सहज प्रमाण है जिसके लिए दिशा निर्धारित कर लेना विज्ञान है।
  2. 7.8 समझदारी ही मानव में, से, के लिए अविभाज्य अक्षुण्ण ऐश्वर्य है।
  3. 7.9 समझदारी का वैभव सुख, समाधान, समृद्धि, परस्परता में विश्वास और नित्य उत्सव होता ही रहता है। इसके लिए समझदारी बौद्धिक प्रयोग, विवेकपूर्वक तथा समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व प्रमाणित होने की विधि से सर्व मानव सुखी होते हैं। इसका प्रयोग न्याय व समाधानपूर्वक सार्थक सुखी होना पाया जाता है। धन का प्रयोग उदारतापूर्वक करने से सार्थक सुखी होते हैं। बल का प्रयोग दया पूर्वक जीने देने व जीने के रूप में सार्थक होता है। रूप के साथ सच्चरित्रता, यथा - स्वधन, स्वनारी, स्वपुरूष, दयापूर्वक किया गया कार्य-व्यवहार विचार से ही सार्थक सुखी होना होता है। यह सर्वशुभ होने की विधि है जो लोकशिक्षा और शिक्षा-संस्कार पूर्वक सार्थक होता है।
  4. 7.10 परस्परता में पूरकता व उपयोगिता पूरकता विधि विदित होना ही यथास्थिति ज्ञान है।
  5. 7.11 यथास्थिति ज्ञान में ही ‘त्व’ सहित व्यवस्था, समग्र व्यवस्था में भागीदारी स्पष्ट होती है।
  6. 7.12 जीवन ज्ञान, सहअस्तित्व दर्शन ज्ञान, मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान का संयुक्त रूप में सम्पूर्ण अध्ययन, बोध और अनुभव होना जागृति है।
  7. 7.13 जीवन और शरीर के संयुक्त रूप में मानव का अध्ययन है।
  8. 7.14 मानवत्व ज्ञान-विवेक-विज्ञान सम्मत होना, विज्ञान विवेक के आधार पर व्यवहार बोधगम्य होना, फलस्वरूप योजनाओं के आधार पर कार्य-योजना सम्पन्न होना जिसका फल, परिणाम मूल ज्ञान के अनुरूप होना सर्वतोमुखी समाधान है।
  9. 7.15 सहअस्तित्व परम सत्य होना ही ज्ञेय है।
  10. 7.16 जीवन ज्ञान ही ‘स्व’ स्वरूप ज्ञान है।
  11. 7.17 जीवन ज्ञान स्वयं में विश्वास का आधार है।
  12. 7.18 ज्ञाता पद में मानव में, से, के लिए जीवन ज्ञान, सहअस्तित्व दर्शन ज्ञान, मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान ही सम्पूर्ण ज्ञान प्रमाण परंपरा है।
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