सभा के अधीनस्थ रहना स्वाभाविक रहता है। गाँव के लिए जितनी भी तकनीकी प्रणालियाँ, पद्धतियाँ सुलभ होनी रहती है गाँव में ही सुलभ हो जाती है। नहीं बन पाने की स्थिति में अन्य सोपानीय व्यवस्था में सुलभ रहता ही है। इस ढंग से हर मानव लक्ष्य के लिए दिशा निर्धारण, उसकी प्रमाणीकरण पद्धति में भागीदार होना सुगम हो जाता है। अब ऐसी सार्थक ज्ञान विज्ञान विवेक सम्पन्नता ही मानव परम्परा में जागृति का वैभव होना स्वाभाविक है।
समझदारी के लिए ध्यान अर्थात् मन लगाना एक अवश्यंभावी कार्य है। आवश्यकता के आधार पर मन लगना बन जाता है। मन लगने के आधार पर समझदारी मानव का स्वत्व होना ही है क्यों कि अध्ययनपूर्वक ही मानव समझदारी सम्पन्न होता देखा गया है। हर मानव ध्यानपूर्वक अध्ययन करने से समझदारी संपन्न हो जाता है। ध्यानपूर्वक अध्ययन करने का मतलब जो शब्दों को सुनते है उनका अर्थ स्वीकृत होना ही बोध है यही अध्ययन है। इसका मतलब हुआ अर्थ बोध होना ही अध्ययन है। अर्थ बोध होने का प्रमाण अस्तित्व में वस्तु का बोध होना। अस्तित्व में वस्तु का बोध होना ही सहअस्तित्व के बोध का स्वरूप है इसमें हर नर-नारी बोध सम्पन्न होना होता है। इस मुद्दे पर लोक संवाद अवश्यंभावी है।
अस्तित्व में जो भी वस्तुएँ है उन सबका सहअस्तित्व में वैभव होना समझ में आने के उपरान्त स्वयं भी सहअस्तित्व में होना बोध हो जाता है। होने का स्वरूप और वातावरण यह दोनों स्थितियाँ सहअस्तित्व दर्शन से स्पष्ट हो जाती है फलस्वरूप मानव यथास्थिति को पहचानने में समर्थ हो जाता है। अर्थात् जागृति सम्पन्न स्थिति को समझने में सम्पन्न हो जाता है। जागृति के आधार पर यथास्थितियों को पहचानने की स्थिति में विज्ञान और विवेक सम्मत निश्चयन सहित कार्यकलापों में प्रवृत्त होना पाया जाता है। यह पहले से विदित हो चुकी है कि विवेक का प्रयोजन लक्ष्य को पहचानने और निर्धारित करने में और विज्ञान का तात्पर्य दिशा निर्धारित करने एवं पहचानने में होना पाया गया है। फलस्वरूप व्यवहार और कार्य इन दोनों में सहअस्तित्व प्रमाणित हो जाता है। सहअस्तित्व को प्रमाणित होने के क्रम में समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व प्रमाणित होता है। फलस्वरूप परिवारमूलक स्वराज्य विधि से हर नर-नारी अपने सौभाग्य को प्रमाणित कर देना सहज है। यह भी मुद्दा जनचर्चा के लिए प्रस्तुत है। इसमें जनसंवाद का मुद्दा यही है हमें जागृत होने के लिए तत्पर होना है कि नहीं होना है।
विज्ञान विधि से काल के साथ क्रिया का, क्रिया के साथ काल को निर्धारित करने की एक सहज प्रणाली बन जाती है। क्योंकि विश्लेषण विधि से सम्पूर्ण प्रकार का वस्तु ज्ञान हुआ ही रहता है।