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आनन्द प्रमाणित हो पाता है तब समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व प्रमाणित होना अवश्यंभावी होता है।

समझदारी से सम्पन्न होने के क्रम में ध्यानपूर्वक ही सफल होना पाया जाता है। ध्यानपूर्वक सफल होने का तात्पर्य हम जो कुछ भी शब्दों को सुनते हैं सटीक सुनने से स्मरण तंत्र तक पहुँचना पाया जाता है। यह सटीक सुनने का तात्पर्य मन लगाकर सुनने से ही है। मन को लगाये रखना ही ध्यान का तात्पर्य है। मन हर नर-नारियों में उद्देश्यों के साथ लगना देखा जाता है। इसका तात्पर्य उद्देश्यों का होना पहले से ही स्वीकृत होना आवश्यक है। जैसे मानव का अच्छा कपड़ा, अच्छा खाना, गाड़ी, घोड़ा, पद, पैसा, सम्मान का उद्देश्य बनता है उसी क्रम में समझदार बनने का उद्देश्य भी स्वाभाविक है। जैसे समझदारी के पहले जितने भी मुद्दे बताये हैं सबको मानव अपने उद्देश्य में स्वीकारना अभी तक सर्वेक्षित है। यह भी सर्वेक्षित है कि समझदारी की अपेक्षा छोटी आयु से ही प्रभावशील रहती है। कुछ आयु तक पद पैसा सम्मान को लक्ष्य बनाकर जैसा भी आदमी जूझता है अच्छे बुरे तरीके से कुछ पाता भी है खोता भी है। इस क्रम में हम चलते हुए कोई न कोई ऐसी जगह में पहुँचते हैं जिसके आगे हमको ज्ञान विवेक सूझता नहीं है, इसी का नाम है काला दीवाल। जिसे हम लक्ष्य पर बनाये थे उसे पाने के बावजूद समस्या शेष रह गयी इसका मतलब है हमारा लक्ष्य सही नहीं था। अत: लक्ष्य पर पुनर्विचार की आवश्यकता बनती है। इसके अभाव में मानव संकट ग्रस्त होता ही है। संकट से छूटना हर व्यक्ति चाहता है। इसलिए हम ज्ञानावस्था के मानव ऐसे लक्ष्य को पहचान लें जिससे सदा के लिए सर्वतोमुखी समाधान अर्जित होता रहे।

सर्वतोमुखी समाधान का धारक वाहक केवल मानव ही है और कोई वस्तु इस धरती पर विद्यमान नहीं है। ज्ञानतंत्रणा का भनक सुदूर विगत से मानवजाति को है। ज्ञान सम्पन्न होने की इच्छा भी है। ऐसी ज्ञान सम्पन्नता के लिए भाँति-भाँति की कल्पना व्यक्तिवाद-समुदायवाद के रूप में भी प्रस्तुत होते आयी है। कल्पनाओं को मानव परीक्षण करने लगा किंतु कोई भी कल्पना, परिकल्पना, प्रस्ताव, ज्ञान लोकव्यापीकरण होने की जगह में नहीं आया। इसके विपरीत कई समुदायों का ऐसा मानना है ज्ञान वर्णनीय नहीं है, शब्दों से बताया नहीं जा सकता, शब्द ज्ञान को बोध कराने में समर्थ नहीं है। ये सब बातें बताते रहे। समुदायों के बुजुर्गों ने जब यह देखा इसका लोकव्यापीकरण नहीं हो रहा है तब दूसरा रास्ता निकाला कि स्वर्ग में सुख मिलेगा और पुण्य कार्यों को निरूपित करना शुरू किया। इसके लिए यज्ञ, दान, तप, परोपकार बताया।

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