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मानव सहज रूप में ही प्रयोग, व्यवहार और अनुभव रुपी प्रमाणों के साथ जीना चाहता है। सर्वतोमुखी समाधान पाना चाहता है अर्थात् विविध आयाम, कोण, दिशा, परिप्रेक्ष्य, देशकाल में समाधान पाना चाहता है। इस आश्य की पुष्टि प्रत्येक मानव में सभी देश काल में प्रकारान्तर से होती है। इसलिए द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के स्थान पर समाधानात्मक भौतिकवाद को मानव के सम्मुख प्रस्तावित किया। विश्वास है- मानव कुल अपनावेगा। इसे अपने ही स्वत्व के रूप में पहचानेगा, स्वीकारेगा और प्रयोजनशील हो जाएगा।

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