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सार्वभौम व्यवस्था को पाने के क्रम में रासायनिक व भौतिक क्रियाकलापों का विधिवत् अध्ययन करना ही होगा। विधिवत् अध्ययन का तात्पर्य है- जो साक्ष्य और वैभव अस्तित्व सहज रूप में ही वर्तमान है उसको वैसे ही जानना, मानना, पहचानना और निर्वाह करना। ऐसा करने पर पता चलता है कि रासायनिक रचनाएँ, चैतन्य प्रकृति के लिए पूरक है और विरचनाएँ जड़ प्रकृति के लिए पूरक है। भौतिक वस्तुओं का मूल रूप और व्यवस्था का प्रमाण विकास को व्यक्त करने वाला वस्तु परमाणु है। प्रत्येक परमाणु अपने में व्यवस्था होने का प्रमाण है। अणु और अणु रचित पिण्डों के रूप में वस्तुएँ है, इस तथ्य को स्पष्ट किया जा चुका है। अतएव व्यवस्था और विकास को पहचानने का आधार परमाणु है न कि रचना।

जिस रचना में जो वस्तु समाहित है उससे वह रचना अधिक नहीं होता। दूसरी विधि से जो जिस वस्तु से बना रहता है, उस रचना की संपूर्ण मौलिकता उस वस्तु के समान होती है। इसको समझने के क्रम में एक लोहे का परमाणु, अनंत परमाणु, एक लोहे का पिण्ड, अनेक पिण्ड ऐसा देखने को मिलता है। लोहे के एक अणु में जितने भी परमाणु समाहित रहते है, उसका मूल्य मूलत: एक परमाणु में लोहत्व समान ही होता हैं। इस आधार पर किसी भी एक प्रजाति के परमाणु से रचित रचनाएँ, आकार, आयतन, घन रूप में बढ़ते-घटते अवश्य हैं। इसके आधार पर अर्थात् मानव शरीर के आधार पर नाप-तौल के आधार पर जिसको हम मात्रा कहते है उस विधि से घटने-बढ़ने मात्र से उन उन वस्तुओं का गुण, स्वभाव जो “त्व” के रूप में प्रमाणित रहती है वह न तो घटती है और न ही बढ़ती है। यह इस बात का साक्ष्य है कि विकास क्रम में हर बिन्दु अपने में विकास क्रम में निश्चित है, क्योंकि लोहत्व, स्वर्णत्व, मणित्व ये सब अपनी अपनी प्रजात्यात्मक परमाणुओं से रचित रचना के रूप में स्पष्ट है। यह सब विकास क्रम में निश्चयता का द्योतक है। इसी आधार पर सहअस्तित्व में प्रत्येक एक अपने त्व सहित व्यवस्था है और समग्र व्यवस्था में भागीदार है। इस सत्य को ख्यात करता है।

इसी क्रम में रासायनिक वस्तुएँ अपने ‘त्व’ सहित व्यवस्था है और समग्र व्यवस्था में भागीदार है। प्राणकोषाओं से ही संपूर्ण वनस्पतियाँ रचित हुआ करती हैं। इन्हीं प्राणकोषाओं से ही जलचर, नभचर, भूचर जीवों का भी शरीर रचित रहता है। इनमें से प्राणावस्था की सभी रचनाएँ (अर्थात् पेड़-पौधे) ऋतु संतुलन के आधार पर वैभवित रहता है और जीव तथा मानव के आहार आदि के रूप में पूरक होता है। प्राणावस्था की विरचना पदार्थावस्था के लिए पूरक है- यह स्पष्ट हुआ एवं प्रमाणित हुआ है। ये सब उर्वरक के रूप में परिवर्तित होकर धरती की उर्वरा शक्ति को बढ़ा देते हैं। इस प्रकार भौतिक-रासायनिक वस्तुएँ सहअस्तित्व के रूप में व्यवस्था को प्रमाणित करता है।

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