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अस्तित्व सहज वर्तमान में मानव जब जागृतिपूर्वक दृष्टा पद में होता है-ऐसी स्थिति में भौतिक-रासायनिक व चैतन्य जीवन, ये समस्त वस्तुएँ व्यापक असीम अवकाश रुपी सत्ता में संपृक्त और अविभाज्य रूप में होना-रहना स्वीकार होता है- यह समझ में आता है। यही मानव में, से, के लिए जागृत होने के क्रम में मुख्य मुद्दा है। ऐसी अविभाज्यता वर्तमान में अनुभव होना ही निर्भ्रमता का प्रमाण है। इस प्रकार इस अस्तित्व को समझने के उपरान्त प्रत्येक मानव प्रामाणिक होता ही है।

प्रामाणिक होने के लिए सहअस्तित्व रूपी सत्य में अनुभव करना मानव के लिए संभव है। यह सभी को तभी संभव है, जब शिक्षा का मानवीयकरण हो जावे। इन तीनों स्थितियों में मानव के वैभवित होने के लिए जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन ज्ञान और मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान ही प्रधान तत्व है। इस सत्य सहज जागृति को मानव प्रमाणित करें यह एक आवश्यकता है क्योंकि:-

1. जागृति पूर्वक ही मानव परपंरा सर्वतोमुखी समाधान पूर्वक व्यक्त होता है।

2. जागृतिपूर्ण मानव परंपरा में ही जागृति पूर्ण शिक्षा-संस्कार सर्व सुलभ होता है।

3. जागृति पूर्वक ही मानव परंपरा में न्याय और सुरक्षा सर्व सुलभ होता है।

4. जागृति सहज मानव परंपरा में उत्पादन सुलभता प्रमाणित होता है।

5. जागृतिपूर्ण मानव पंरपरा में ही आवर्तनशील अर्थ प्रणाली श्रम नियोजन, श्रम विनिमय पद्घति से विनिमय सुलभता होता है।

6. जागृति पूर्ण मानव परंपरा में ही परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था दश सोपानीय विधि से सर्वसुलभ हो पाता है। ये सभी मानवों के लिए आशित (अपेक्षित), आकांक्षित और आवश्यकीय उपलब्धियाँ हैं। इसके सफल होने के मूल में मानव परंपरा है। अर्थात् मानवीयतापूर्ण शिक्षा, संस्कार, संविधान और व्यवस्था है। यह मानवीयतापूर्ण अथवा जागृतिपूर्ण पद्घति, प्रणाली और नीति से प्रमाणित होता ही है।

परंपरा में जागृति होना तभी संभव है जब परिवर्तन की बेला में सच्चाईयों के आधार पर गहराई के साथ व्यवहार में, प्रमाणों को प्रमाणित करने की निष्ठा, कम से कम एक व्यक्ति में हो। एक से अधिक व्यक्ति में प्रमाणित करने की निष्ठा होना और भी अच्छा है।

विविध प्रकार से मानव इतिहास का आज हम अवलोकन कर पा रहे है। उसमें दो स्थल ऐसे दिखाई पड़ते है जिन स्थलों में गहराई, गंभीरता एवं व्यवहार प्रमाण का संयोग हो सकता था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

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