जीवन की वे क्रियाएँ जो जागृत हो चुकी हैं - यही प्रकाशित, संप्रेषित, अभिव्यक्त हो रही है। अन्य क्रियाएँ अर्थात् शेष क्रियाएँ जो जागृत नहीं है वे प्रकाशित नहीं होती।
दस क्रियाएँ जो ऊपर बताई गई है, वे जीवन सहज संपूर्ण क्रियाएँ हैं। ये सभी क्रियाएँ अविभाज्य है। अविभाज्यता का तात्पर्य एक दूसरे से अलग न होने से हैं। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि जीवन अपनी संपूर्णता में वैभव है और जीवन का भाग-विभाग नहीं होता। किसी भी दबाव, कितने भी दबाव और विखण्डन विधियों से जीवन को भाग-विभाग नहीं किया जा सकता, क्योंकि दबाव और भाग-विभाग की जो कुछ भी परिकल्पना है वह मानव में ही सर्वाधिक रूप से प्रकाशित होती दिखाई पड़ती है। इसका तात्पर्य यही हुआ कि मानव जीवन को भाग-विभाग में अर्थात् विखंडन और दबाव से कुछ करना चाह सकता है किन्तु कर नहीं पायेगा क्योंकि कल्पनाशीलता में बहुत सारी ऐसी चीजों की कल्पना की जा सकती हैं। इसको मानव देखता है पानी बहता है, इसलिए मिट्टी भी बहेगी, पत्थर भी बहेगा ऐसी कल्पना कर सकते है जबकि ऐसा होता नहीं। इससे यह भी स्पष्ट हुआ कि उदाहरणों के आधार पर और अधिक स्पष्ट रूप में जिसकी यथार्थता को अध्ययन करना है, उससे भिन्न वस्तु का उदाहरण देकर उस वस्तु का अध्ययन करना संभव नहीं है। जिसको हम उदाहरण से अध्ययन करना चाहते है जैसे ऊपर एक उदाहरण और अध्ययन की बात बताई गई। इसमें पत्थर को, मिट्टी को उन-उनके आचरण के अनुसार अध्ययन करना होगा न कि पानी के आचरण के अनुसार। इस प्रकार हमें यह भी समझ में आता है कि अध्ययन का आधार उनका आचरण ही है।
उक्त तथ्य को ध्यान में रखते हुए हम देखें कि भ्रम में मानव ने अध्ययन का जो तरीका अत्याधुनिक माना है, वह कितना बेतुका है। वह तरीका है- मानव को अध्ययन करना है तो मानव को काटकर देखो, एक झाड़ का अध्ययन करना है तो झाड़ को काटकर देखो; एक अणु का अध्ययन करना है तो अणु को काटो; एक परमाणु का अध्ययन करना है तो एक परमाणु को काटो। इस अध्ययन विधि में खण्ड-विखण्ड अथवा क्षत-विक्षत करने के लिए दबाव विधि को अधिक कारगर माना गया है- जैसे “चुम्बकीय बल का दबाव डालने से परमाणु में आवेश पैदा होना”- फलस्वरुप सभी अंशों का अलग-अलग हो जाना पाया जाता है। परमाणु ही सबसे अधिक सूक्ष्म है, इस कारण परमाणु में ही मूल व्यवस्था समाहित है, इस कारण दबाव विधि से ही आवेश और विखण्डन पाया गया। इसमें मूलत: “शक्ति किसकी लगी और क्या लगी”- यह खोजने पर उत्तर मिलता है कि “विदेशी शक्ति अर्थात् परमाणु से भिन्न चुम्बकीय विद्युत शक्ति व बल लगा”- इसकी संप्रेषणा हुई। इसीलिए परमाणु में जो विकार पैदा होना था, वह हुआ। इसी से यह पता