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अस्तित्व ही विद्वत्ता की संपूर्ण वस्तु है। मानवीयता ही संपूर्ण आचरण हैं। अखण्ड समाज ही विद्वत्तापूर्ण मानवत्व का वैभव है। सार्वभौम व्यवस्था ही अस्तित्व में जागृत मानव के अविभाज्य वर्तमान होने का प्रमाण है। मानव में स्वानुशासन ही जागृति पूर्णता का प्रमाण है। इस प्रकार अच्छाईयों में प्रमाणित, समर्थित मानव में धीरता, वीरता, उदारता, दया, कृपा, करुणा सहज मानवीय स्वभावों से अनुप्राणित, अभिप्रेरित और जीता-जागता स्थिति मिलता है। सही, न्याय, समाधान, अभ्युदय संपन्न श्रेष्ठतम मानव परिवार, मानव समाज, मानव व्यवस्था का सहज वैभव है। यही विकसित परिवार अर्थात् जागृत परिवार, जागृत समाज अथवा जागृत मानव अखण्ड समाज के अर्थ में सार्थक हो पाता है।

यह समाधानात्मक भौतिकवाद की सार्थकता और उद्देश्य है।

जागृति के आधार पर ही मानव संबंध, मूल्य और मूल्यांकन विधि से न्याय को प्रमाणित करता है। यह जागृति का प्रमाण है। सहअस्तित्व में संबध सहज वर्तमान है, इसको पहचान लेना जागृति है। संबंध को पहचानने का प्रमाण ही है मूल्यों का निर्वाह करना। इससे यह सूत्र स्पष्ट हो जाता है कि मूल्यों का निर्वाह करना जीवन सहज हैं। संबंधों को पहचानना मानव सहज है। शरीर और जीवन के संयुक्त रूप में मानव हैं। मानव सहज रूप में जो-जो पहचान पाता है उसी में जीवन शक्तियाँ और बल अभिव्यक्त होते हैं। इसका प्रमाण मानव इतिहास रुपी विभिन्न आयामों में इसके कार्यकलापों को स्मरण में लाने पर स्वयं स्पष्ट होता है। जैसे-जैसे आदि काल से मानव जिस वस्तु को पहचान कर पाता था उसी में मानव शक्तियाँ अर्थात् आशा, विचार, इच्छा रुपी शक्तियाँ लगता ही रहा है। इसे किसी भी आयाम के साथ विचार कर देखें और वर्तमान में किसी भी एक पहचान के साथ अपना परीक्षण कर देखें। इस धरती के प्रत्येक मानव को देखें तब हम यही पाते है कि जो संबंधों को जैसा पहचान लिए है उसी में उसकी शक्तियाँ बहती हुई दिखाई देती है।

जैसे एक व्यक्ति अपने बच्चे को पहचान लिया उस स्थिति में ममता व वात्सल्य मूल्य अपने आप बहता है। उसी प्रकार जैसे स्वयं के बच्चे को पहचाने और ममता वात्सल्य बहा, वैसे ही किसी भी बच्चे को पहचानने की स्थिति में वैसा ही ममता और वात्सल्य का बहना देखने को मिलता है। एक मित्र का एक मित्र के साथ संबंध पूर्णतया पहचानने के उपरान्त पहचान तथा निर्वाह हो पाता है। वैसे ही प्रत्येक मित्र के साथ पहचान तथा निर्वाह हो पाना स्वाभाविक है। ऐसे ही गहराई से देखें तो प्रत्येक व्यक्ति अपने सम्मुख मित्रता सहित मुलाकातें होने की कामना करता ही है। प्रत्येक व्यक्ति से हर व्यक्ति विश्वास की अपेक्षा रखता है, न कि अविश्वास की। इसका प्रमाण यही है कि अनजान देश, अनजान व्यक्ति, अनजान भाषा आदि की विपरीतता होते हुए भी एक दूसरे से मिलने के लिए जब कोई व्यक्ति मानसिकता बनाता है, तब सामने वाला व्यक्ति

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