अनुभूति ही आप्तत्व है । अनुभूति केवल सहअस्तित्व रूपी परम् सत्य में है । वह क्षमता, योग्यता एवं पात्रता पर निर्भर है । वह जागृति पर; जागृति इच्छाओं पर; इच्छाएँ संस्कारों पर; संस्कार वातावरण, अध्ययन एवं पूर्व संस्कारों पर, तथा संस्कार वातावरण अध्ययन एवं पूर्व संस्कार अनुभूति सहज परंपरा पर आधारित होना रहना पाया जाता है ।
अनुभूति वर्ग, मत, संप्रदाय, पक्ष, भाषा की सीमाओं से बाधित नहीं है ।
अनुभूति योग्य अर्हता को उत्पन्न कर देना ही सुसंस्कार है ।
ब्रह्मानुभूति योग्य अर्हता पर्यन्त संस्कार पूत होना भावी है ।
“नित्यम् यातु शुभोदयम्”