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ऐषणात्रय में वित्तेषणा से पुत्रेषणा तथा पुत्रेषणा से लोकेषणा श्रेष्ठ होने के कारण मानवीयता से अधिक स्थिति (अतिमानवीयता) को पाने के लिए जिज्ञासा प्रसिद्ध है ।

मानव चेतना सम्पन्न मानव ऐषणा त्रय में, से, के लिए उत्पादन के अधिकांश को नियोजित करता है । फल ही है कि वित्तेषणा और पुत्रेषणा तक सीमित जनमानस उन्हीं के मार्गदर्शन में सुरक्षित रहना उनसे पीढ़ी से पीढ़ी प्रेरणा प्राप्त करना चाहते हैं ।

लोकेषणायुक्त मानव में धर्म पूर्ण सत्य दृष्टि; धीरता, वीरता, उदारता एवं दया पूर्ण स्वभाव है । यही देवमानव है । वे निर्विवाद रूप से अन्य अजागृत इकाईयों के मार्गदर्शक है ।

जिस मानव के उत्पादन का अधिकांश वितरण में और न्यून अंश परिवार में उपयोग, सदुपयोग के निमित्त प्रयुक्त होता है वही श्रेष्ठ मानव है । वही ब्रह्मानुभूति क्षमता को पाने का अधिकारी है । वितरण का तात्पर्य अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था में नियोजन से है ।

“नित्यम् यातु शुभोदयम्”

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