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अनुभवमय अस्तित्व में ही परमानंद, आनंद, संतोष, शांति और सुख पूर्ण आप्लावन निरंतरता है ।

ब्रह्मानुभूति में परमांनद आत्मा में, आत्मानुभूति में आनंद बुद्धि में, बुद्धि सहज अनुभूति में संतोष चित्त में, चित्त सहज अनुभूति में शांति वृत्ति में एवं वृत्ति सहज अनुभूति में सुख मन में है । यही अनुभव समुच्चय है ।

अनुभव समुच्चय ही अभ्युदय की परम उपलब्धि एवं लक्ष्य है ।

अभ्युदयशील सामाजिकता ही अनुभव समुच्चय ग्रहण करने योग्य क्षमता, योग्यता एवं पात्रता प्रदान करती है । यही परम्परा का आधार भी है ।

मानवीयता का संरक्षण, संवर्धन, आचरण एवं संयम ही सामाजिकता है ।

धीरता, वीरता, उदारतापूर्ण स्वभाव, पुत्रेषणा, वित्तेषणा, लोकेषणा पूर्ण विषय प्रवृत्तियाँ तथा न्याय, धर्म एवं सत्यता पूर्ण दृष्टि ही मानवीयता सहज महिमा है । जिसके संरक्षण हेतु संस्कृति, सभ्यता एवं विधि व्यवस्था का प्रणयन शिक्षापूर्वक एवं जागृति के लिए सर्वसुलभ होता है । अनुभवपूर्ण मानव में मानवीयतापूर्ण व्यवहार स्वभावतः पाया जाता है ।

मानवीयतापूर्ण व्यवहार ही सामाजिकता है ।

अखण्डता सार्वभौमता सहज सामाजिकतापूर्ण जीवन ही अतिमानवीयता के प्रति जिज्ञासा है ।

“नित्यम् यातु शुभोदयम्”

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