1.0×

भ्रांताभ्रांत ज्ञानात्मा की अग्रिम जागृति ही निर्भ्रान्त देवात्मा, निर्भ्रान्त देवात्मा का अंतिम विकास ही निर्भ्रान्त दिव्यात्मा पद-प्रकट है । यह गुणात्मक विकास श्रृंखलाबद्ध सिद्ध है । इस समग्र जागृति क्रम का आधार, प्रेरणा एवं त्राण भी केवल ज्ञान में ही है ।

अधिक और कम की गणनाएँ अपेक्षाकृत हैं तथा भाव और अभाव भी हैं ।

काल, विस्तार और इकाई की गणनाएँ हैं ।

जड़ता के प्रति आसक्ति स्वतंत्रता का लक्षण नहीं है । उससे मुक्ति के लिए उपदेश है, यह जागृति के लिए प्रेरणा है ।

प्रत्येक मानव स्वतंत्र होना-रहना चाहता है ।

अनुभव समुच्चय ही स्वतंत्रता है । दर्शन समुच्चय पूर्वक कार्यक्रम समुच्चय का अनुसरण करना ही साधना है । फलतः अनुभव है ।

मानव में अनादि काल से अमरत्व और अजेयत्व की कामना विद्यमान है ।

मानव पराजय नहीं चाहता है ।

मानव में बल-बुद्धि-रूप-पद-धनात्मक विभूतियों की उपलब्धियाँ प्रत्यक्ष है ।

निर्भ्रम अवस्था में बुद्धि अजेय और आत्मा अमर है जिसका अनुभव प्रसिद्ध है । निर्भ्रम अवस्था में जीवन स्वयं अमर और अजेय है । यही संप्रभुता है । मन, वृत्ति, चित्त, बुद्धि का आत्मा से वियोग नहीं है ।

स्वतंत्रता ही अजेयत्व एवं अनुभव ही अमरत्व है । यही क्रम से सतर्कता एवं सजगता है जिसके लिए ज्ञानात्मा प्यासी है ।

स्त्री एवं पुरूष शरीरों के आकार मात्र जड़ संरचना अलग तथा वैचारिक दातव्यता समान वैभव है ।

Page 34 of 64
30 31 32 33 34 35 36 37 38