परिमार्जन होता है । फलतः अनुभव अभिलाषी एवं प्रयासी भी होता है । इसी क्रम में जिज्ञासा एवं प्रयासपूर्वक गुणात्मक विकास से संपन्न होता है । फलतः अनुभव होता है ।
अनुभव = सत्य = व्यापक = शून्य = परमात्मा = ज्ञान = साम्य ऊर्जा = सत्ता = ब्रह्म रूपी सत्ता में अनुभव है ।
अनुभव इकाई की अर्जित क्षमता, योग्यता, पात्रता है । यही जागृति का चरमोत्कर्ष व लक्ष्य है, जिसके निमित्त ही आद्यांत प्रयास है ।
“नित्यम् यातु शुभोदयम्”