अनुभव सहज आनंद में निरंतरता ब्रह्मानुभूति सहज आद्यान्त लक्षण है जो अधिक, न्यून व अभाव से मुक्त है । अनुभव सहज अभिव्यक्ति ही संपूर्ण भाव सम्पन्नता और प्रमाण है ।
अजागृत मानव इकाईयों के जागृति में सहायक होना भ्रम मुक्त एवं जागृत मानव इकाइयों का स्वभाव है ।
मोक्ष पद ही नित्य, अन्य पद अनित्य है ।
मोक्ष पद में ही आनंद सहज निरंतरता है । अन्य किसी पद में नहीं ।
आत्मा सहज अभीष्ट ही “यह” (ब्रह्म) में अनुभव है । इसलिये, आत्मा अपने से अविभाज्य बुद्धि, चित्त, वृत्ति एवं मन से प्रभावित नहीं है ।
आत्मा मध्यस्थ क्रिया और ब्रह्म मध्यस्थ सत्ता है ।
सम-विषमात्मक क्रिया तथा शक्ति से आत्मा प्रभावित नहीं है ।
आत्मा ही “मैं” और “मैं” में ईष्ट ब्रह्म है ।
ब्रह्मानुभूति सम्पन्न मानव ही जड़ प्रकृति की आसक्ति से मुक्त है जिसका जीवन भ्रम मुक्त अवस्था में है ।
जीवनमुक्त इकाई (भ्रममुक्ति) में भूत, भविष्य की पीड़ा एवं वर्तमान का विरोध नहीं है । यही अन्य के सुधार के लिये व जागृति के लिये प्रेरणा स्त्रोत हैं ।
‘यह’ में अनुभव ही परमानंद है ।
‘यह’ में अनुभव की तृष्णा प्रत्येक मानव इकाई में विद्यमान है ।
‘यह’ में अनुभव आत्मा को और बोध बुद्धि को होता है ।
‘यह’ ही शून्य, ज्ञान और साम्य सत्ता है । इसलिए ‘यह’ समस्त क्रिया का आधार है ।